________________
बात कहते हैं। मैं उनसे कहना चाहता हूं, ठंडे मुल्कों में शरीर का तापमान ठीक बनाए रखने के लिए वह एक क्षेत्रीय आवश्यकता हो सकती है, फिर भी वहां बहुत-सारे ऐसे लोग भी हैं, जो शराब का सेवन नहीं करते । भारतवर्ष तो वैसे भी गर्म जलवायु वाला देश है, इसलिए यहां तो यह तर्क यों ही व्यर्थ है। यहां तो शराब पीना आदत की लाचारी के सिवाय और क्या है। इसलिए व्यक्ति के विवेक का तकाजा यही है कि वह स्वयं तो मद्य से कोसों दूर रहे ही, दूसरों को पिलाने की नासमझी भी कभी न करे। कई लोग ऐसे होते हैं, जो स्वयं तो मद्य नहीं पीते हैं, पर पार्टी आदि में अतिथियों को पिलाते हैं । इसके पीछे उनका तर्क यह होता हैं कि मद्य आगन्तुओं को बहुत प्रिय है। यदि न पिलाएं तो उनके नाराज होने की पूरी संभावना रहती है। पर मैं इस तर्क में भी तथ्य नहीं देखता। यह तो पिलाने वालों की कमजोरी का द्योतक है। व्यक्ति जिस चीज को स्वयं पीना बुरा मानता है, उसे दूसरों को पिलाना कहां तक उचित है। मैं मानता हूं, यदि वह दूसरों को मद्य न पिलाने का संकल्प करले और उस पर पूर्ण दृढ रहे तो पीने वालों पर भी अच्छा प्रभाव पड़ेगा। यह कैसी सभ्यता !
कई युवक ऐसा कहते हैं कि हमारी इच्छा तो नहीं है, पर सोसाइटी कुछ ऐसी है कि उसमें सभ्यता के नाते धूम्रपान और मद्यपान करना पड़ता है। मैं नहीं समझता, यह कैसी सभ्यता ! यह तो बिलकुल असभ्यता है । ऐसी झूठी सभ्यता से व्यक्ति को सलक्ष्य बचना चाहिए।
मद्यपान-निषेध के सन्दर्भ में कुछ बातें आपसे कही। आवश्यकता है, इसका व्यापक अभियान चले। व्यापारी, राज्यकर्मचारी, मजदूर सभी वर्गों के लोग स्वयं से शुभ शुरुआत करें। यानी वे इस बात के लिए संकल्पबद्ध हों कि हम न तो स्वयं शराब पीएंगे और न औरों को ही पिलाएंगे। स्वयं के संकल्पबद्ध होने के पश्चात् दूसरों को इस दिशा में प्रेरित करने का मार्ग भी उनके लिए सहज बन जाएगा।
१७४
मानवता मुसकाए
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org