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बनते, धर्म-स्थानों को अवश्य अपवित्र बना देते हैं । अतः आपको इस भ्रांति में नहीं रहना चाहिए कि धर्म-स्थानों में आने वाले सभी लोग विशुद्ध प्रवचन सुनने के पवित्र उद्देश्य से आते हैं।
वास्तविकता यह है कि जहां पवित्र उद्देश्य से लोग धर्म-स्थानों में आते हैं, तो ऐसे लोग भी बहुत हैं, जो इससे भिन्न उद्देश्य रखते हैं । आप देखें, प्रवचन समाप्त हो जाने के पश्चात् कई लोग यहां से बाहर निकलते हैं और धूम्रपान करते हैं। इसलिए वातावरण को विशुद्ध बनाए रखने के लिए धर्मस्थानों में भी मद्य-निषेध, धूम्रपान-वर्जन आदि के बारे में बोलना, चर्चा करना आवश्यक है, उपयोगी है। विकास की प्रक्रिया
आज देश के नेता लोग विकास की बातें अवश्य करते हैं, पर इस बात पर ध्यान क्यों नहीं देते कि हास को रोके बिना विकास कभी भी सम्भव नहीं है। देश के जन-जीवन में आज अनेक प्रकार की बुराइयां व्याप रही हैं। क्या यह मानव-समाज का ह्रास नहीं है। इस ह्रास को रोके बिना विकास के लिए किया गया कोई भी प्रयत्न या उपक्रम अपनी सार्थकता सिद्ध कैसे कर सकेगा। मकान यदि साफ करना है तो पहले दरवाजोंखिड़कियों को बंद करना होगा, ताकि नई रेत मकान में न आए। इसके पश्चात् मकान के अन्दर की रेत झाडू से निकालनी होगी। दरवाजों, खिड़कियों को बंद किए बिना झाडू लगाने से उसका प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा । यही बात बुराइयों को मिटने के सन्दर्भ में भी है। पहले बुराइयों के आने के मार्ग को रोकना अपेक्षित है। जो पूर्वकृत हैं, उनका प्रायश्चित्त करना आवश्यक है। मद्यपान के दुष्परिणाम
___ मद्यपान भी एक बुराई है । बौद्धों के पंचशील में पांचवां शील सुराविरमण ही है । इससे ऐसा प्रतिभासित होता है कि बुद्ध के समय मद्यपान एक व्यापक बुराई थी। महाभारत में कहा गया है-सुराज्य वही है, जहां कदर्य, कृपण और मद्यप नहीं हैं। जिस परिवार, समाज, प्रान्त और देश में मद्य पीने वाले लोग अधिक होते हैं, वह परिवार, समाज प्रान्त और देश पतनोन्मुखी होता है।
मद्य, विषय, कषाय, निद्रा और विकथा-ये पांच प्रमाद माने गए हैं। यहां ध्यान देने की बात यह है कि इनमें मद्य का स्थान प्रथम है। मद्यपान करने से व्यक्ति प्रमादी बन जाता है। और प्रमादी की गति आप जानते ही हैं । उसे पग-पग पर भय सताता है। भगवान महावीर की वाणी
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मानवता मुसकाए
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