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________________ जीवों के प्रति मोह नहीं और छोटे जीवों के प्रति उपेक्षा नहीं । वह सर्वजीवहितकारिणी है । छोटे-बड़े सभी प्राणियों के लिए वह समान रूप से कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है । सिक्के के दो पहलू I रूपक की भाषा में हिंसा और अहिंसा धूप और छांह की तरह एक सिक्के के दो पहलू हैं। जैसे धूप और छांह परस्पर कहीं मिलती नहीं, इसी इसी तरह हिंसा और अहिंसा का भी कभी मिश्रण नहीं हो सकता । दोनों का क्षेत्र बिलकुल भिन्न भिन्न है । वैसे गुड़ खाने वाला क्या कभी अफीम नहीं खाता ? आवश्यकता पड़ने पर खा सकता है । पर इतना अवश्य है कि उसे गुड़ और अफीम दोनों का अलग-अलग ज्ञान होना चाहिए । अज्ञानवश गुड़ के स्थान पर अफीम खाने का क्या परिणाम आता है, यह बहुत स्पष्ट है । उसे मुझे बताने की जरूरत नहीं । उसी प्रकार हिंसा और अहिंसा का ज्ञान होना चाहिए। हिंसा को अहिंसा मानने से वही अनर्थ होता है, जो अफीम को गुड़ मानकर खाने से होता है । 360 Jain Education International For Private & Personal Use Only मानवता भुसकाए www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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