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________________ ६५. अहिंसा की व्यापकता हिंसा कभी भी अहिंसा नहीं होतो भगवत्-वाणी है-'तत्थ पढमं अहिंसा, तसथावरसव्वभूयखेमकरी'अहिंसा सब प्राणियों के लिए क्षेमकरी है, कुशल करने वाली है। वह सर्वव्यापी है। कुछ लोग हिंसा से अहिंसा की रक्षा करने की बात करते हैं। उसमें धर्म बताते हैं। प्रश्न है, हिंसा से अहिंसा की रक्षा करने में धर्म है ? इस प्रश्न का समाधान इसकी व्यापकता में निहित है। जिस अहिंसा की रक्षा करने की बात कह जाती है, उसकी तो हिंसा कर पहले ही हत्या कर दी। यहां समझने की बात यह है कि अहिंसा की रक्षा के लिए जिन प्राणियों की हिंसा हुई, उनके लिए अहिंसा अन्ततः क्षेमकरी कैसे हो सकती है। तत्व यह है कि हिंसा अन्ततः हिंसा ही है। भले वह अहिसा की रक्षा के बहाने हो अथवा किसी अन्य नाम पर । कर्तव्य बनाम अहिंसा ___ मैं इस वास्तविकता से इनकार नहीं होता कि व्यवहार में व्यक्ति को कर्तव्य-पालन के निमित्त हिंसा करनी पड़ सकती है। वह उसकी एक आवश्यकता है, अनिवार्यता है । पर आवश्यकता-अनिवार्यता होने के उपरान्त भी वह हिंसा ही है। उसे अहिंसा नहीं माना जा सकता। हमें यह बात अच्छे ढंग से ख्याल में ले लेनी चाहिए कि अहिंसा और कर्तव्य दो अलग-अलग तत्व हैं। कहीं-कहीं दोनों मिल अवश्य जाते हैं, फिर भी दोनों एक नहीं हैं । यानी सभी कर्तव्य अहिंसा नहीं हैं। हां, अहिंसा अवश्य कर्तव्य है। पर कर्तव्यमात्र को धर्म मानना संगत नहीं होगा। हम देखते हैं, पागल कुत्ते को मारा जाता है, लेकिन पागल मनुष्य को नहीं । क्यों ? इसलिए कि मनुष्य के संरक्षक हैं और पागल कुत्ते का कोई संरक्षक नहीं। पर इतना तो स्पष्ट है कि पागल कुत्ते को मारना अहिंसा नहीं है, धर्म नहीं है। यदि उसे मारना अहिंसा है, धर्म है तो फिर पागल मनुष्य को मारना भी अहिंसा कैसे नहीं होगा, धर्म कैसे नहीं होगा। अहिंसा समदर्शी है । वह पक्षपात से सर्वथा परे है । अर्थात् बड़े अहिंसा की व्यापकता १६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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