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आवश्यकता इस बात की है कि मनुष्य इस सूक्ष्म हिंसा को समझकर इससे अधिक-से-अधिक बचे। इसके लिए धर्मगुरुओं को सलक्ष्य प्रयत्न करना चाहिए । उनके द्वारा जितना बल अहिंसा के स्थूल रूप पर दिया जाए, उससे अधिक अहिंसा के आन्तरिक और सूक्ष्म रूप पर दिया जाए, क्योंकि आन्तरिक हिंसा में प्रत्यक्ष जीवघात न होने से वह अब तक जन-साधारण के लिए बुद्धिगम्य नहीं हो सकी है। यही कारण है कि आज लोग जितना जीव मारने से घबराते हैं, उतना परस्पर विरोध, ईर्ष्या, क्रोध आदि से नहीं। इस प्रयत्न से जब जन-साधारण में इसकी समझ विकसित हो जाएगी तो उसे व्यवहार्य बनाना उसके लिए कठिन नहीं होगा।
मानवता मुसकाए
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