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६४. सूक्ष्म अहिंसा की समझ जागे
असत् प्रवृत्ति हिंसा है
अहिंसा के संदर्भ में यों तो सभी धर्म-प्रवर्तकों ने अपने-अपने ढंग से चिंतन किया है, पर जैन तीर्थंकरों ने इस बारे में बहुत सूक्ष्मता से विचार किया है। उन्होंने कहा-अहिंसा का सम्बन्ध आत्मा से है । किसी जीव को मारना हिंसा है। पर हिंसा की सीमा यहीं समाप्त नहीं हो जाती। वह बहुत आगे तक है। कोई जीव न भी मरे, फिर भी जो अपनी असत् प्रवृत्ति है, वह हिंसा है । एक व्यक्ति क्रोध करता है-यह मानसिक हिंसा है । कोई अपने स्थान पर बैठा किसी के प्रति ईर्ष्या करता है, भले उसकी भावना उस तक नहीं पहुंच पाती, फिर भी वह हिंसा है। बुरे चिंतन से अपनी हिंसा तो होती ही है, चाहे दूसरे की हो या न हो। पर-हत्या : आत्म-हत्या
पर-हत्या-मारना जितना बड़ा पाप है, आत्म-हत्या भी उससे कम नहीं है । पर-हत्या में हत्या का फल व्यक्ति स्वयं ही पाता है, घरवालों की कोई जिम्मेवारी नहीं होती। लेकिन आत्म-हत्या कर मरने वाला स्वयं तो फल पाता ही है, साथ-ही-साथ घर वालों को भी परेशानी उठानी पड़ती है । सरकारी कर्मचारी आकर घर-परिवार वालों को किस प्रकार तंग करते हैं, यह आपसे छुपा नहीं है। आत्म-हत्या करने वाला भले स्वयं अपनी इच्छा से मरता है, पर इतने मात्र से उसे अहिंसा तो नहीं कहा जा सकता। तात्पर्य यह कि असत् प्रवृत्ति हिंसा है, चाहे वह अपने लिए हो अथवा दूसरों के लिए। सूक्ष्म हिंसा के विविध रूप
__ कोई किसी की तथ्यहीन टीका या आलोचना करता है, यह भी हिंसा है। किसी के विचारों को तोड़-मरोड़ कर रखना, गलत आरोप लगाना वैचारिक हिंसा की कोटि में आता है। किसी के उत्कर्ष को न सहकर उसके प्रति ईर्ष्या का भाव करना, घृणा का प्रचार करना हिंसा है। वध हिंसा का स्थूल रूप है। मानसिक हिंसा और वैचारिक हिंसा सूक्ष्म रूप हैं।
सूक्ष्म अहिंसा की समझ जागे
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