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६२. विश्व शान्ति का आधार *
संघर्ष कहां ?
जीवन का सर्व सुखद पक्ष है - चरित्र । उसकी विकास-भूमि है-: क्षमा । उसका परिणाम है - मैत्री । असहिष्णुता से वैर बढता है । वैर चरित्र का विकार है और उससे सुख-शान्ति की रेखा क्षीण हो जाती है । अकेलेपन में क्षमा या अक्षमा की स्थिति नहीं होती । इनका प्रसंग द्वैत में होता है। जहां दो हैं, वहीं संघर्ष है ।
संघर्ष के बीज
संघर्ष का हेतु विविधता या भेद है । मनुष्यों में रुचि, विचार और आचार का भेद होता है । चिन्तन की सहज धारा ऐसी होती है कि हमारी भांति ही सब लोग बोलें-चलें, खाएं- पीयें, बैठें उठें, सोचें - करें, | किन्तु रुचि-भेद के कारण ऐसा होता नहीं । यहीं संघर्ष उठ खड़ा होता है । मनुष्य में दूसरों को अपने अधीन करने की वृत्ति है । अपने सुख भोग और बड़प्पन के लिये दूसरों के सुख, भोग और महत्ता को लूटने की लालसा भी है । ये सब संघर्ष के बीज हैं । शक्तिहीन व्यक्ति इन्हें नहीं बो सकते । शक्तिशाली लोग ही इन्हें बो सकते हैं और जब कभी इन्हें बो डालते हैं, फल कटुक ही होते हैं ।
संघर्ष कैसे टले ?
संघर्ष के परिणाम हैं - चिनगारी, पाप और सर्वनाश । क्रोध के प्रति क्रोध, वैर के प्रति वैर, घृणा के प्रति घृणा और हिंसा के प्रति हिंसा की परम्परा जहां चली, वहां दुर्व्यवस्था का परिसीमन नहीं हुआ ।
जिसने अन्तर्दृष्टि से देखा, उसने कहा--संघर्ष टालने की यह पद्धति त्रुटिपूर्ण है । क्रोध को शांति से जीतो । इसी प्रकार अभिमान को नम्रता से, माया को ऋजुता से और लोभ को सन्तोष से जीतो । वैर को मंत्री से और घृणा को प्रेम से जीतो । हिंसा की परिसमाप्ति अहिंसा में ही हो सकती है । मानवीय विचारणा का सर्वोपरि मृदु और मधुर परिपाक शांति है ।
* मैत्री दिवस पर प्रदत्त संदेश
विश्व शान्ति का आधार
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