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अणव्रत का सार्थक प्रयत्न
अणुव्रत-आन्दोलन के अन्तर्गत नैतिक प्रशिक्षण एवं नैतिक-संगठनों के प्रयोग इन वर्षों में हुए हैं और उनका सुपरिणाम भी सामने आया है। मैंने स्वयं तथा अणुव्रत- प्रचारक सैकड़ों साधु-साध्वियों व कार्यकर्ताओं ने व्यापक रूप में देश के विभिन्न भागों में विद्यालयों में जा-जाकर नैतिक प्रशिक्षण का कार्य किया है। इस प्रयत्न के परिणामस्वरूप लाखों विद्यार्थियों में नैतिक सामर्थ्य अर्जित हुआ है। कुछ प्रसंगों पर होने वाली हड़ताले व तोड़फोड़ की नौबतें टली हैं । अनेक विद्यालयों व महाविद्यालयों में विद्यार्थियों ने स्वयं इस कार्य को उठाया है। उन्होंने निर्धारित निम्न पांच प्रतिज्ञायें की हैं और अपने साधी विद्यार्थियों को वे प्रतिज्ञायें दिलाने में दत्तचित्त होकर लगे हैं१. मैं परीक्षा में अवैधानिक तरीकों से उत्तीर्ण होने का प्रयत्न नहीं
करूंगा। २. मैं तोड़फोड़मूलक हिंसात्मक प्रवृत्ति में भाग नहीं लूंगा। ३. मैं विवाह-प्रसंग में रुपये आदि लेने का ठहराव नहीं करूगा । ४. मैं धूम्रपान व मद्यपान नहीं करूंगा। ५. मैं बिना टिकट रेलादि की यात्रा नहीं करूंगा।
देहली में उक्त दोनों प्रयोग अत्यन्त प्रभावशाली रहे हैं। राष्ट्रपति डा. राजेन्द्रप्रसाद, प्रधानमंत्री श्री नेहरू व दिल्ली विश्वविद्यालय के उपकुलपति डा वी० के० आर० वी० राव प्रभृति ने उक्त प्रयोगों को इस दिशा का आशाप्रद प्रयत्न माना है। अस्तु, अणुव्रत-आन्दोलन के अन्तर्गत या किसी भी सात्विक रूपरेखा से विद्यार्थियों में नैतिक प्रशिक्षण व नैतिक संगठन के प्रयत्न व्यवस्थित व व्यापक रूप से आगे बढे, तो आशा है, आज का विद्यार्थीसमाज चारित्रिक क्रांति का अग्रदूत व भावी पीढी का संयत सूत्रधार बन जायेगा।
विद्यार्थी : चारित्रिक क्रांति का अग्रदूत
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