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उस समय विद्यार्थियों को प्रारम्भ से ही सीखने को मिलता था--.. गुरु पितृतुल्य होता है। गुरुहन्ता की गति नहीं होती। गुरु से अनुशासित होने पर कुपित नहीं होना चाहिये । गुरु की अवज्ञा करने वाला विद्या नहीं प्राप्त कर सकता ।..... इसका अर्थ यह नहीं कि जिन प्रकारों व जिन युक्तियों से प्राचीनकाल में विद्यार्थियों को संस्कारित किया जाता था, उन्हीं प्रकारों एवं युक्तियों को ज्यों-का-त्यों काम में लाया जाए। आज का प्रशिक्षण तो आज की भाषा व आज की शैली में ही सफल हो सकता है। पर अध्यापकों के प्रति विद्यार्थियों के मन में आन्तरिक श्रद्धा-सम्मान की भावना होनी चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक शिक्षण-संस्थाएं अनुशासित नही रह सकतीं। वर्तमान वातावरण में तो ऐसा लगता है, मानो विद्यार्थीसमाज अध्यापक-वर्ग को अपना पढाने वाला नौकर मानकर चल रहा है।
। अस्तु, उस नैतिक प्रशिक्षण से विद्यार्थी-समाज नम्र, अनुशासनशील, व सच्चरित्र बनेगा, इसमें कोई विवाद नहीं रह जाता । इस दिशा में दूसरा मार्ग विद्यार्थियों को चरित्र-निर्माणात्मक संगठनों में लगाने का है । विद्यार्थी जब तक शान्त स्थिति में होते हैं, उन्हें अनुशासन व चरित्र की बात सिद्धांतरूप से मान्य होती है और कर्तव्य-रूप से ग्राह्य होती है। प्रत्येक विद्यालय में ऐसे विद्यार्थियों का बहुमत मिल सकता है। प्रबुद्ध-विवेक दशा में यदि वे स्वयं ऐसे नैतिक संगठन बना लेते हैं, जिनका उद्देश्य विद्यार्थियों में नैतिक जागृति पैदा करना हो, तो संभव है, नब्बे प्रतिशत विद्यार्थी इन संगठनों में आ जायें। यदि इतने नहीं भी आयें तो भी वह विद्यार्थियों का एक ऐसा मोर्चा होगा, जो दूसरे विद्यार्थियों को कुमार्गगामी होने से बचायेगा और उद्दण्ड विद्यार्थियों के गिरोह को प्रभावशून्य करेगा। विद्यार्थी-समाज को कुमार्ग से बचाने वाला विद्यार्थी-समाज ही हो सकता है। इस वानरी सेना को पुलिस व अन्य शिक्षाधिकारी संभाल सकेंगे, यह कठिन लगता है। विद्यार्थियों का राजनैतिक उपयोग बन्द हो
विद्यार्थियों की उच्छखल प्रवृत्ति का एक प्रमुख कारण उनका सक्रिय राजनीति में भाग लेना भी है । पर इसके लिये वे स्वयं ही दोषी हों, ऐसी बात नहीं है । राजनैतिक नेतृजन समय-समय पर उनके आवेश, भावुकता व अदूरदर्शिता का सामयिक उपयोग कर उन्हें असात्विक प्रवृत्तियों के आदी बना देते हैं । उसका परिणाम समग्र देश आये दिन भोगता रहता है। आवश्यक तो यह है कि इस विषय में सर्वदलीय निर्णय हो कि हम राजनैतिक प्रयोजन-सिद्धि में विद्यार्थियों का गलत उपयोग नहीं करेंगे ।
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मानवता मुसकाए
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