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५९. थोड़ा गहराई से सोचें*
एक भावना : एक प्रतीक
दिवस मनाना कोई प्रथा नहीं है। उसके पीछे एक विशिष्ट भावना होती है। विचारों का प्रवाह विरल होता है और वह किसी दिन घनीभूत हो जाता है। यह एक निमित्त है और वह अपनी भावना का प्रतीक, दूसरों के लिए प्रेरक बन जाता है। राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक दिवस मनाये जाते हैं । 'अहिंसा-दिवस' राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नहीं मनाया जाता। इसके लिये अभी पृष्ठभूमि भी नहीं बनी है। लोगों में भोगवाद और सुख-सुविधावाद का विचार बड़ी तीव्र गति से प्रसार पा रहा है। इसके होते हुए 'अहिंसा-दिवस' मनाएं तो क्या और न मनाएं तो क्या।
सैनिक नियन्त्रण भी धीमे-धीमे अपने पैर जमा रहा है । लगता है, जैसे जनता में स्वयं का नियंत्रण न रहा हो या सब में सत्ता की भूख जाग उठी हो। इस स्थिति में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसा-दिवस मनाने का अर्थ क्या होगा। अहिंसा-दिवस मनाने का उद्देश्य
_ 'अहिंसा-दिवस' में आखिर आकर्षण क्या है ? यह न तो किसी क्रांति की स्मृति है और न ही भौतिक समृद्धिमय भविष्य का संकेत ।
जनता उसकी मनौती करती है, जिससे कुछ भौतिक लाभ मिले। हिंसा के लाभ तत्काल होते हैं । जिस चेतावनी के पीछे अणु अस्त्र बोलते हैं, वह सफल हो जाती है और जिसके पीछे नीति की पुकार होती है, उसे बड़े लोग सहसा सुनते तक नहीं। लोगों में विश्वास पैठ रहा है कि हिंसा सफल हो रही है । इस स्थिति में अणुव्रत-आन्दोलन 'अहिंसा-दिवस' मनाने का अनुरोध करता है, यह लोगों को कुछ विचित्र-सा लग सकता है। इस विचित्रता की पृष्ठभूमि में वर्तमान विश्व का मानचित्र देखने का यत्न करें। सहसा दीख पड़ेगा कि राष्ट्रीय जीवन में इधर भोग बढ़ रहा है तो उधर बाहरी नियन्त्रण । इसी तरह अन्तर्राष्ट्रीय जीवन में एक ओर स्पर्धा बढ रही है तो दूसरी ओर आणविक अस्त्रों के परीक्षण । *अहिंसा-दिवस पर प्रदत्त संदेश ।
मानवता मुसकाए
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