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________________ ५८. विद्यार्थी : चारित्रिक क्रान्ति का अग्रदूत विद्यार्थी की आठ अर्हताएं भगवान महावीर ने कहा-- ० अह अहिं ठाणेहि, सिक्खासीले त्ति वुच्चई । अहस्सिरे सया दंते, न य मम्ममुदाहरे ॥ ० नासीले न विसीले, न सिया अइलोलुए। अकोहणे सच्चरए, सिक्खासीले त्ति वुच्चई ॥ अर्थात् आठ गुणों से सम्पन्न विद्यार्थी ही शिक्षाशील रह सकता है। विद्यार्थी विदूषक की तरह हास्यरस न हो और न मर्मभाषी, अशील, विशील और लोलुप हो । वह अक्रोधी, सत्यनिष्ठ और इन्द्रिय-दांत हो । इस परिभाषा का व्यतिरेक उदाहरण आज के विद्यार्थी हैं। उनका जीवन-क्रम मनचाहे सिनेमा देखने के लिये, अश्लील और विचारोत्तेजक साहित्य पढने के लिये व किसी भी स्वेच्छाचार के लिये पूर्ण स्वतंत्र है। विद्यार्थियों में व्याप्त उद्दण्डता प्राचीन शिक्षा-व्यवस्था में विद्यार्थियों की संयम-साधना के लिये अनेक अनिवार्य नियम थे। आज के विद्यार्थी-समाज पर उनमें से एक भी नियम लागू रह गया हो, ऐसा नहीं लगता । अनुशासनहीनता, अवैधानिक तरीकों से परीक्षा में उत्तीर्ण होने का प्रयत्न करना, तोड़फोड़ व लड़ाईझगड़ा करना आदि बातें तो उनके जीवन का सहज क्रम बन गई हैं। परीक्षा के दिनों में वे प्रतिवर्ष इस दिशा में कुछ-न-कुछ नये आविष्कार कर ही डालते हैं। समाचार-पत्रों से ज्ञात हुआ है कि इस वर्ष तो परीक्षार्थी विद्यार्थियों ने छूरे और पिस्तौल का इन्तजाम भी अपने स्वेछाचार की सुरक्षा के लिये करना प्रारम्भ कर दिया है। कहीं-कहीं नकल आदि करने की स्वतंत्रता में व्याघात डालने वाले व्यवस्थापकों पर उनका प्रयोग भी हुआ है। एक छात्रा ने नकल करने में बाधा डालने वाली अध्यापिका का हाथ शस्त्राभाव में दांतों से ही काट खाया। दक्षिण में विद्यार्थियों की उद्दण्डता के कारण अन्नामलाई विश्वविद्यालय की परीक्षाएं भी बन्द कर देनी पड़ी। १५२ मानवता मुसकाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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