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________________ ५७. बचपन को संवारें मानव-समाज की आज जो स्थिति है, वह कोई उत्साहप्रद नहीं है। उसमें कोई आनन्द नजर नहीं आता है । मनुष्य कोई भी काम करता है, वह आनन्द के लिए ही करता है । कठिन-से-कठिन काम भी मनुष्य इसलिए खुशी से करता है कि उसमें उसे आनन्द मिलता है। आज जबकि यातायात के अनेकानेक साधन विकसित हो गए हैं, हम साधु लोग हजारों मील कड़ी धूप में पैदल चलते हैं। यह क्यों ? इसलिए कि हमें इसमें आनन्द की अनुभूति होती है । आनन्द की अनुभूति इसलिए कि हम अपने-आप पर विजय पाने के लिए सचेष्ट हैं। और इस सचेष्टता के चलते पद-यात्रा में ही क्यों, किसी भी कठिन-से-कठिन काम में हमें आनन्द महसूस होता है। पर साधारण मनुष्यों की आज ऐसी स्थिति नहीं है। वे कोई भी काम करते हैं, उसमें उन्हें आनन्द महसूस नहीं होता । इसका कारण यह है कि उनका जीवन भितिशून्य हो गया है। उनके पैरों से नीति की भित्ति खिसक गई है । लोग इसका समाधान भी पाना चाहते हैं, पर लगता है जैसे समाधान मिल नहीं रहा है । विद्यार्थी-काल निर्माण-काल है मेरी दृष्टि में इसका सही समाधान यही है कि बचपन को संवारा जाए । बालक-बालिकाओं के जीवन-निर्माण पर ध्यान केन्द्रित किया जाए। बचपन में वे जैसे होने हैं, हो जाएंगे। इस समय उनमें अच्छे संस्कारों का आना असम्भव नहीं है। इसीलिए देश के विचारक प्रयत्न करते हैं, जगहजगह स्कूलें चलाते हैं, विद्यापीठे खोलते हैं। पर लगता है, इनसे भी गति सुधार की ओर नहीं मुड़ रही है । इसका कारण है कि आज वातावरण शुद्ध नहीं है। स्कूलों और विद्यापीठों में तो लड़के अध्यापकों के पास पांच-छह घण्टे रहते हैं, बाकी दिन तो उनका माता-पिता तथा पास-पड़ोस के बीच ही बीतता है। घर पर आते हैं तो वे देखते हैं-पिताजी धूम्रपान करते हैं, तासचौपड़ खेलते हैं। मां लड़ाई करती है, सास-बहू आपस में गालियां निकालती हैं।... इससे स्कूल की सारी शिक्षाएं नीचे दब जाती हैं। पुराने जमाने में इसीलिए विद्यार्थियों को एकान्त गुरुकुल में रखा जाता था। घर के वातावरण से वे बारह वर्षों तक बिलकुल अपरिचित-से रहते थे। गुरु ही उनके बचपन को संवारें १४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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