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हाथ ऊपर उठाया कि किसी ने पीछे से उसका हाथ पकड़ लिया। मंत्री ने मुड़कर देखा तो वह राजा था । अपराधबोध से ग्रसित मंत्री लज्जित हुआ और बोला -- 'मुझे मत रोकिए, मरने दीजिए, मेरे जैसा नीच संसार में दूसरा कोई नहीं है ।' राजा ने समझाया --' - 'नहीं, यह कभी नहीं हो सकता । मुझे तुम पर पूर्ण विश्वास था, तभी तो मैंने रानी को ऐसा निदेश दिया था । '
इस घटना ने मंत्री के जीवन की सम्पूर्ण धारा को ही बदल दिया । तात्पर्य यह कि शरीर से अब्रह्मचर्य का सेवन न करना भी ब्रह्मचर्य की साधना का एक स्तर है । साधक पहले शारीरिक अब्रह्मचर्य का त्याग करे और फिर क्रमश: वाणी व मन का संयम करे ।
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मानवता मुसकाए
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