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जानने की कई बार चेष्टा की। पर हर बार उसे असफलता ही मिली। मंत्री 'ऐसे ही' कहकर बात टालता रहा । कभी भी उसने अपना मन नहीं खोला।
और खोलता भी कैसे, राज-रानी से प्रेम करने की बात कोई सामान्य बात तो नहीं थी। यह तो एक प्रकार से मौत को ही न्योतना था। पर एक दिन राजा ने एकान्त में अपनी शपथपूर्वक अत्यन्त आत्मीयता से बार-बार पूछा तो वह आग्रह को टाल नहीं सका । उसने निस्संकोच अपनी मनःस्थिति प्रकट कर दी । राजा ने मीठा उपालंभ देते हुए कहा-'राजा-मंत्री के सम्बन्ध से भी अधिक हम दोनों के परस्पर आत्मीय मित्र के सम्बन्ध हैं। ऐसी स्थिति में यह ऐसी क्या बात थी, जो तुमने बार-बार पूछने पर भी छुपाकर रखी। यदि पहले ही बता देते तो ऐसी स्थिति उत्पन्न होने की नौबत ही नहीं आती । खैर, इतना ही अच्छा हुआ, जो तुमने अब बता दिया। अब तुम निश्चिन्त रहो । तुम्हारी मनोभावना पूरी होगी।'
अवसर देखकर राजा ने रानी को एक रात मंत्री के निवास स्थान पर जाने का निदेश दिया। इस अप्रत्याशित निदेश को सुन रानी एकदम घबराई। और यह बिलकुल स्वाभाविक ही था। उसने राजा से इस निदेश को वापस लेने के लिए बहुत निवेदन किया। पर राजा ने उसकी एक नहीं सुनी। रुख कड़ा करता हुआ बोला-'मैं इस सम्बन्ध में कुछ भी सुनना नहीं चाहता। निदेश निदेश ही होता है। उसका हर हालत में पालन होना चाहिए । पालन न होने का परिणाम तुम जानती ही हो ।'
रानी के समक्ष एक तरफ अपने शील की रक्षा का प्रश्न था तो दूसरी तरफ राजाज्ञा के पालन का। शील की रक्षा तो उसे करनी-ही-करनी थी, साथ ही राजा का कोप-भाजन बनना भी उसे उचित नहीं लगा। अतः इस निर्णय के साथ कि कोई विपरीत स्थिति आई तो प्राणोत्सर्ग की किम्मत पर भी शील को खण्डित नहीं होने दूंगी, उसने मंत्री के निवास स्थान पर जाने के लिए स्वयं को तैयार किया । भारी कदमों से वह मंत्री के भवन पहुंची। मंत्री बड़ी आतुरता से उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। रानी जैसे ही भवन की सीढ़ियां चढ़ने लगी, मंत्री की दृष्टि उस पर गिरी। उसे देखते ही सहसा मंत्री की भावना एकदम बदल गई। उसके मन में चिन्तन उभरा-राजा की रानी सबकी माता होती है। माता पर बुरी दृष्टि करना महापाप है। उसने अपनी आत्मा को धिक्कारा और रानी की अगवानी करता हुआ बोला-'पधारिये माताजी! आपने बड़ी कृपा की। मेरे घर को पावन किया।' रानी ने समझ लिया--मंत्री की भावना विशुद्ध है। बस, वह उन्हीं पैरों राजमहल को लौट गई। पीछे से मंत्री ने अपने इस पाप के प्रायश्चित्तस्वरूप आत्महत्या करनी चाही । पर ज्योंही उसने कटारी घोंपने के लिए
ब्रह्मचर्य
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