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________________ वह अत्यन्त विनम्रतापूर्वक बोला-'महाराज ! आप पधारें।' राजा किसी के घर बैल देखने क्यों जाए। पर राजा ने चूंकि प्रथम तो उसे दुःख दूर करने का आश्वासन दे दिया था, फिर मन भी कौतुहल से भरा था, इसलिए उसके घर जाना स्वीकार कर लिया। राजा उसके घर पहुंचा। उसने अपना अहोभाग्य मानते हुए स्वागत किया । राजा ने पूछा-'बैल कहां है ?' वह बोला-'प्रभो ! मकान के अन्दर ।' राजा का कौतूहल और अधिक गहरा गया। उसने उसी भावधारा में कहा--'क्या बैल भी कहीं कोई मकान के अन्दर रहता है !' वह बोला-'महाराज ! मेरा बैल तो अन्दर ही रहता है। कभी बाहर निकलता ही नहीं।' ___ राजा भवन के भीतरी भाग में पहुंचा। भवन काफी बड़ा था। वह व्यक्ति राजा का पथ-दर्शन करता हुआ आगे-आगे चल रहा था। चलतेचलते जब वह सोपान-मार्ग के पास पहुंचा तो राजा ने पुनः प्रश्न किया'बैल कहां है ?' सोपान पर चढता हुआ वह बोला—'ऊपर ।' बैल के ऊपर होने की बात सुन राजा का विस्मय व कौतूहल गहरा से और गहरा हो गया। सोपान-मार्ग पार कर राजा ऊपरी मंजिल पर पहुंचा। सोपान के ठीक सामने एक कक्ष था। उसके द्वार पर परदा था । कक्ष के पास पहुंचकर जैसे ही उस व्यक्ति ने वह परदा हटाया, राजा विस्फारितनयन रह गया। पूरा कक्ष रत्नों की ज्योति से जगमगा रहा था। ऐसा दृश्य तो उसके अपने महलों में भी नहीं था । उसके लिए यह एक पहेली थी। उसने उसी भावमुद्रा में पूछा-'अरे ! क्या बैल यहां रहता है ?' वह बोला-'हां, महाराज ! मेरा बैल यहीं रहता है। आप अन्दर पधारें।' राजा ने कक्ष में प्रवेश किया और उसके पैर सहसा ठिठक-से गए । वह टकटकी लगाकर देखता ही रह गया । कक्ष के एक कोने में एक बैल खड़ा था । कैसा बैल ? बहुमूल्य हीरों, पन्नों, मोती, माणिक, नीलम, पुखराज ....... से जड़ा हुआ बैल । अद्भुत रश्मियां उससे विकीर्ण हो रही थीं। राजा के विस्मय का कोई पार नहीं रहा। इतना धन तो उसके विशाल खजाने में भी नहीं था । उस व्यक्ति की स्थिति पर उसे तरस आई-इतना धन और ऐसी दशा ! प्रकट में उससे बोला-'तुम्हारे पास इतना धन है, फिर कैसी समस्या ? कैसा दुःख ? .... ...' वह बोला--'समस्या और दु:ख यही कि अभी तक मैं यह एक बैल कौन होता है गरीब ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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