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रानी को आश्वस्त करते हुए कहा-'ठीक है, मैं सारी स्थिति का पता लगवाता हूं।'
रानी अपने कक्ष में लौट गई। राजा का मन कड़वाहट से भर गया ---मेरा यह विपुल ऐश्वर्य व्यर्थ है । मैं महलों में बैठकर आनन्द करूं और मेरी प्रजा इस तरह दुःख भोगे । धिक्कार है मेरे इस विलास को !
राजा ने आदेश देकर उस व्यक्ति को अपने पास बुलवाया। फटे हाल वह राजा के सम्मुख उपस्थित हुआ। राजा ने पूछा--'भाई! रात्रि के समय इस भयंकर मौसम में तुम इतना कठिन श्रम क्यों कर रहे हो ? आखिर तुम्हारी ऐसी क्या मजबूरी है ?'
उसने उत्तर दिया---'महाराज ! मैं एक अत्यन्त दु:खी प्राणी हूं। मुझे बैलों की एक जोड़ी चाहिए। पर कठोर श्रम करने के बावजूद भी अब तक मेरे पास एक बैल ही है। जोड़ी नहीं। जोड़ी बनाने के लिए ही मैं दिन-रात श्रम करता हूं।'
____ 'बस, इतनी-सी बात है । मैं अभी तुम्हारे दुःख को दूर कर देता हूं, समस्या को हल कर देता हूं।' --राजा ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा ।
उसी समय राजा ने मंत्री को बुलाया और निदेश दिया कि इसे इसकी मन-पसन्द का एक बैल दिला दो।
प्रातः वह उपस्थित हुआ। राजा के निदेशानुसार मंत्री ने उसे एक बैल दिलाया । पर उसे वह पसन्द नहीं आया । दूसरा दिखाया । पर उसे भी उसने नापसन्द कर दिया। तीसरा, चौथा, पांचवां........."सब नापसन्द कर दिए । तब मंत्री ने कहा--'तुम स्वयं ही वृषभशाला से अपनी मनपसन्द का बैल चुन लो।'
राजकीय वृषभशाला में बैलों की क्या कमी थी। एक-से-एक अच्छे बैल थे । पर कैसा आश्चर्य ! उसे कोई भी बैल पसन्द नहीं आया।
बात पुन: राजा के पास पहुंची। राजा ने उस व्यक्ति को बुलाकर कहा-'ऐसा करो कि तुम अपना बैल यहां ले आओ और उससे मिलाकर जोड़ी का बैल ले जाओ।'
'ना-ना, मेरा बैल यहां नहीं आ सकता।'-वह एकदम बोला।
राजा ने मन-ही-मन कहा- लगता है, इस बात में कोई गहरा राज है । मुझे इस राज को जानना चाहिए। अतः उससे कहा-'तुम्हारा बैल यहां नहीं आ सकता तो हमारे आदमियों को घर ले जाकर दिखा दो। फिर तुम्हारी व्यवस्था हो जाएगी।'
'नहीं-नहीं, आपके आदमियों को मैं अपना बैल नहीं दिखा सकता।' -ऐसा कहकर उसने रहस्य को और अधिक गहरा दिया ।।
राजा ने सोत्सुक पूछा-'फिर कौन देख सकता है ?'
मानवता मुसकाए
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