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________________ ५३. कौन होता है गरीब ? अपरिग्रह बनाम गरीबी ___ मैं बहुधा लोगों के मुंह से इस आशय की बात सुनता हूं कि अपरिग्रह का सिद्धांत देश को गरीब बनाता है। मुझे यह बात तथ्यपरक प्रतीत नहीं होती । अपरिग्रह का अर्थ यह नहीं कि व्यक्ति गरीब बन जाए। उसका सही अर्थ है-धन के प्रति अमूर्छा, अर्थ-संग्रह के प्रति अनाकर्षण । वस्तुतः धन का न होना गरीबी नहीं है, अपितु धन के प्रति मूर्छा, धन-संग्रह के प्रति आकर्षण का भाव गरीबी है। इसलिए धन के अभाव में व्यक्ति गरीब नहीं होता, अपितु गरीब वह है, जो धन के लिए हाय-हाय करे। सबसे बड़ा गरीब वह है, जो करोड़ों-अरबों का धन होने के उपरांत भी पैसे-पैसे के लिए बेतहाशा दौड़ता रहे, जीवन की शांति दांव पर लगा दे। अमावस्या की अंधेरी रात । मेघमालाओं के घने आवरण से आवृत आकाश । मूसलाधार वर्षा । आकाश-पाताल को एक कर देने वाली भयंकर गर्जन । सीने को भेदकर निकल जाने वाली वह ठंडी हवा । कड़कड़ाहट के साथ आकाश में बिजली कौंधी और क्षण भर के लिए चारों ओर प्रकाशही-प्रकाश छितर गया। महारानी चेलना उस समय अपने महल में झरोखे के सामने ही बैठी थी। उस प्रकाश में उसने देखा-इस भयंकर मौसम में एक व्यक्ति सामने नदी की धारा में बहती लकड़ियों को इकट्ठा करने में जुटा है । देखकर रानी के मन में संवेदना उभरी-ओह ! कितना गरीब और दुःखी व्यक्ति है । अन्यथा इस भयावह मौसम में नदी में उतरना तो बहुत दूर, ऐसा करने की सोच भी नहीं सकता। वह उन्हीं पैरों महाराज श्रेणिक के कक्ष में गई और सारी स्थिति से अवगत कराया । राजा ने रानी का प्रतिवाद करते हुए कहा--'क्या तुम अभी नींद से उठ कर आई हो? सपने की बात कर रही हो ? मेरे राज्य में ऐसा गरीब व्यक्ति हो नहीं सकता, जिसे इतना कठिन श्रम करना पड़े।' रानी ने कहा-'सपने में नहीं, मैंने खुली आंखों से अभी-अभी देखा राजा के लिए अब अविश्वास का कोई कारण नहीं था। उसने कौन होता है गरीब ? १२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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