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________________ सुरक्षा की दृष्टि से जिस प्रकार कंटीली बाड़ का उपयोग और महत्त्व है, उसी प्रकार ब्रह्मचर्य की सुरक्षा की दृष्टि से इन बाड़ों का उपयोग और महत्त्व असंदिग्ध है। इन बातों के प्रति सजग रहनेवाला साधक ब्रह्मचर्य की साधना की दृष्टि से अत्यंत सुरक्षित हो जाता है। पर यह सुरक्षा की बात यहीं समाप्त नहीं होती है। इसे और सुदृढ बनाने के लिए एक परकोटे के रूप में दसवीं बात और कही गई है। ब्रह्मचारी साधक मनोज्ञ शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श के प्रति राग भाव न लाए। इसी प्रकार अमनोज्ञ शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श के प्रति द्वेष भाव न लाए । इस राग-द्वेष मे बचना उसकी साधना को सहज बनाने में अत्यंत योगभूत बनता है। ____ 'ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमुपानत'--ब्रह्मचर्य के बल से देवों ने मौत को जीता। वस्तुतः आत्मशक्ति का विकास होने पर अजरामर पद-- मोक्ष की प्राप्ति होती है। उसके बाद मौत का मुंह कभी नहीं देखना पड़ता। पर मुझे यह कहने में कोई कठिनाई नहीं कि आज ब्रह्मचर्य की अलौकिक शक्ति का जन-जीवन में अत्यंत ह्रास हुआ है। अब्रह्मचर्य के दुष्परिणाम पन्द्रह-सोलह वर्ष की उम्र के पश्चात् काफी लड़के-लड़कियां ब्रह्मचारी नहीं रहना चाहते। कई-कई तो इससे पहले ही गलत रास्ते चले जाते हैं। आप देखें, कहां तो पचीस वर्ष तक ब्रह्मचारी रहने की बात और कहां यह स्थिति । मैं मानता हूं, अब्रह्मचर्य के इस बढ़ते प्रभाव का मुख्य कारण वातावरण की अस्वस्थता है। आज का वातावरण ब्रह्मचर्य की दृष्टि से इतना प्रतिकूल और दूषित हो गया है कि सामान्य व्यक्ति का उससे अप्रभावित रहना कठिन है । इसके दुष्परिणाम हमारे सामने बहुत स्पष्ट हैं। जहां चार आश्रम यानी सौ वर्ष तक जीने की कल्पना की गई थी. वहां व्यक्ति दुसरेतीसरे आश्रम तक आते-आते समाप्त हो जाता है। संजीवनी शक्ति नष्ट होने के पश्चात् वह जीए भी तो कैसे ।। ___ इसका दूसरा दुष्परिणाम क्रमश: क्षीण होती हुई स्मरण-शक्ति के रूप में सामने आया है। कभी आगम, वेद और पिटक की विशाल ज्ञानराशि भी कंठस्थ के आधार पर सैकड़ों वर्षों तक सुरक्षित रही। पर अब तो स्थिति यह बनी है कि आज सुना प्रवचन दो दिन बाद भी याद रहना कठिन आप इस बात को निश्चित रूप से समझे कि यदि मनुष्य को सुखपूर्वक जीना है तो उसे ब्रह्मचर्य की शक्ति को सुरक्षित रखना होगा। यद्यपि १२६ मानवता मुसकाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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