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________________ पूछा जा सकता है, अति आहार की परिभाषा क्या है ? शास्त्रों में पुरुष के भोजन का परिमाण बत्तीस ग्रास माना गया है। बत्तीस ग्रास से अधिक खाना उसके लिए अति आहार की कोटि में आता है। इसी प्रकार महिला के आहार का परिमाण अट्ठाइस ग्रास है। इससे अधिक आहार ग्रहण करना उसके लिए अति आहार है।। हवा प्राणियों के लिए एक आवश्यक तत्व है। उसके बिना प्राणी जी भी नहीं सकता । लेकिन उसका अतिभाव तो भारभूत ही है। यही बात आहार की भी है । उसके अभाव में प्राणी एक अवधि के पश्चात् जीवित भी नहीं रह सकता। पर अति आहार शरीर एवं साधना दोनों दृष्टियों से ही घातक है। इसीलिए ब्रह्मचर्य की साधना के लिए इसका वर्जन किया गया है। विभूषा-वर्जन - ब्रह्मचारी साधक के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि वह न तो स्वयं शृंगार करे और न ही शृंगार की हुई स्त्री को निहारे । यह एक प्रकट सचाई है कि शृंगार विलास का साधन है। आज का जनमानस शृंगारप्रिय है। उसे अपने प्राकृतिक सहज सौन्दर्य से सन्तुष्टि नहीं है। इसलिए कृत्रिम शृंगार/प्रसाधन-सामग्री से अपने सौन्दर्य को बढाना चाहता है। आए दिन शृंगार से सम्बन्धित प्रतियोगिताएं आयोजित होती रहती हैं। स्त्रियों में सहज सौन्दर्य होता है। फिर भी जाने क्यों उनका आकर्षण कृत्रिम प्रसाधनों के प्रति अधिक रहता है। मैं मानता है, अपनेआपको ज्यादा सुंदर प्रदर्शित करने की उनकी मनोवृत्ति उनके स्वयं के लिए अनेक बार खतरा बन जाती है। यदि वे कृत्रिम सौन्दर्य से मुंह मोड़ अपने आत्मबल को जगा लें, आत्म-सौन्दर्य को निखार लें तो उन्हें परापेक्षी होने की आवश्यकता ही नहीं होगी। वे स्वयं ही अपने शील/सतीत्व की सुरक्षा करने में पूर्ण सक्षम हो जाएंगी। इतिहास में अनेक ऐसी सतियों के नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं, जिन्होंने हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान कर दिया, पर शील पर तनिक भी आंच नहीं आने दी, सतीत्वको खंडित नहीं होने दिया। ऐसी नारियों को क्या आप अबला कहेंगे ? मेरी दष्टि में वे अबला तो हैं ही नहीं, किसी भी सबल-से-सबल पुरुष की तुलना में कम नहीं हैं। इसलिए महिलाओं से मैं विशेष बलपूर्वक कहना चाहता हूं कि वे शृंगार/विभूषा के द्वारा स्वयं को सुंदर प्रदर्शित करने की मनोवृत्ति का परित्याग कर अपने आन्तरिक सौंदर्य को पहचानें और उसे निखारें। ब्रह्मचर्य की साधना के लिए तो यह उपयोगी ही नहीं, अत्यंत आवश्यक भी है। ये नव बातें 'शील की नव बाड़' के रूप में प्रसिद्ध हैं। खेती की तवेसु वा उत्तम बंभचेरम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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