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ब्रह्मचर्य के लिए अत्यन्त घातक है । साधक को तो इससे सलक्ष्य बचना ही चाहिए, जन-सामान्य के लिए भी इसका परहेज आवश्यक है।
___ स्मृति-संयम-ब्रह्मचर्य की साधना के लिए यह नितांत आवश्यक है कि साधक पूर्वकाल में सेवन किए गए काम-भोग का स्मरण न करे । कभीकभी तो साक्षात् सम्बन्ध से भी स्मृति अधिक हानिकारक हो जाती है।
चार मित्र अर्थोपार्जन के लिए किसी दूरस्थ नगर में जा रहे थे। विश्राम के लिए वे एक मार्गवर्ती ग्राम में एक बुढिया ब्राह्मणी के घर में ठहरे । बुढिया ने सत्कारपूर्वक उन्हें भोजन करवाया । प्रकृति से वह बहुत भद्र थी। उसे उन यात्रियों से स्नेह हो गया। उसके मन में चिंतन आया-ये सुबह उठकर लंबी यात्रा के लिए प्रस्थान करेंगे । ऐसी स्थिति में मेरे घर से भूखे पेट जाएं, यह मेरे लिए अच्छा नहीं है । भोजन तो इतना जल्दी बन नहीं सकता, पर कम-से-कम छाछ तो पिला दूं । इस चिंतन के आधार पर उसने सुबह जल्दी उठकर बिलौना किया और छाछ बनाई। बड़ी आत्मीयता से चारों यात्रियों को छाछ पिलाकर विदा किया। उनके जाने के पश्चात् सूर्योदय होने पर उसने देखा----अंधेरे के कारण छाछ के साथ एक सांप का भी मंथन हो गया है। उसके मन में बड़ी चिंता हुई- मैंने जो छाछ पिलाई, वह विषमिश्रित थी । मेरी थोड़ी-सी असावधानी के कारण वे बेचारे मौत के मुंह में पहुंच गए होंगे । हा! बहुत बड़ा अनर्थ हो गया. इस चिंता और अनुताप में उसने दो-तीन दिन तक पूरा भोजन भी नहीं किया।
इधर यात्री छाछ के विषमिश्रित होने की बात से सर्वथा अनभिज्ञ थे। उन पर उसका कोई असर नहीं हुआ। वे सकुशल अपने गंतव्य पर पहुंच गए। दो वर्ष पश्चात् वापस घर आते समय मार्ग में विश्राम के लिए उसी गांव में उसी बुढिया ब्राह्मणी के घर पर पहुंचे। बुढिया ने उनका हार्दिक स्वागत किया। पर वह उन्हें पहचान नहीं सकी। यात्रियों ने भोजन करवाने एवं छाछ पिलाने की बात कही तो उसे स्मरण हो आया और तब उन्हें पहचनाने में तनिक भी कठिनाई नहीं हुई। वह अत्यन्त प्रसन्न होती हुई बोली--'बहुत अच्छा हुआ, तुम सकुशल वापस आ गए।' यात्रियों ने उसके कथन के रहस्य को जानना चाहा। वह उनके अत्यधिक आग्रह के समक्ष बात को छुपा कर नहीं रख सकी। सारा यथार्थ प्रकट कर दिया। चारों यात्रियों ने सुना और विस्मय में डूबते हुए बोले-'अच्छा, उस छाछ में जहर था !' और इतना कहने के साथ-साथ ही जहर शरीर पर प्रभावी हो गया। वे तत्काल वहीं ढेर हो गए।
आप देखें, विषमिश्रित छाछ पीने से जिनकी मौत नहीं हुई, वे ही उसकी स्मृति-मात्र से काल-कवलित हो गए। इस घटना के परिप्रेक्ष्य में
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मानवता मुसकाए
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