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________________ एकासन-वर्जन-साधक स्त्री के साथ एकासन पर न बैठे । यदि वह साधिका है तो पुरुष के साथ एकासन पर बैठने का परहेज करे । जिस प्रकार आग के पास मक्खन पिघल जाता है, उसी प्रकार विपरीतलिंगी के साथ एकासन पर बैठने से ब्रह्मचर्य को खतरा पैदा होने की प्रबल संभावना बन जाती है। हमारे शरीर से प्रतिक्षण पुद्गलों का विकीर्ण होता रहता है। ये पुद्गल हमारे मन को भी प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं । विपरीतलिंगी के शरीर से विकीर्ण होने वाले पुद्गल साधक के मन को प्रभावित कर उसके ब्रह्मचर्य के लिए खतरा न बनें, इस दृष्टि से उसके साथ एकासन पर बैठने का निषेध किया गया है। दृष्टि-संयम ब्रह्मचर्य का साधक अपनी दृष्टि का संयम रखे, यह नितांत अपेक्षित है। विकार की दृष्टि से वह किसी को न देखे । दृष्टि दूरबीन होती है । विकारी अपने प्रिय को दूर से देख लेता है। जो साधक दृष्टि-संयम नहीं रख पाता, उसका ब्रह्मचर्य कभी भी खंडित हो सकता है। किसी व्यक्ति ने मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाया। डाक्टर ने कुछ दिनों तक पढने एवं अधिक देखने का निषेध किया, जिससे कि आंख को जोर न पड़े। पर रोगी संदेहशील मानस का था। उसने डाक्टर के निदेश/परामर्श पर ध्यान नहीं दिया। उसके मन में विकल्प उठा- क्या मेरी आंख ठीक हो गई है ? संदेह को मिटाने के लिए उसने ज्येष्ठ मास के मध्याह्न के सूर्य के सामने देखा । परिणाम स्पष्ट था। आंखों की रोशनी चली गई। विकारदृष्टि साधक के लिए इसी तरह घातक है। इसलिए ब्रह्मचारी विपरीतलिंगी को विकार-दृष्टि से न देखे । श्रुति-संयम-दृष्टि-संयम की तरह ही साधक के लिए श्रुति-संयम भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । कानों से सत्कथा, उपदेश आदि सुना जाता है तो अश्लील शब्द भी । ब्रह्मचारी अश्लील शब्दों को न सुने । लोग जब सिनेमा आदि में अश्लील शब्द सुनते हैं तो उनके मन में विकार पैदा होने लगता है। इसलिए साधक के समक्ष जब-कभी अश्लील गीत या शब्द कान में पड़ने का प्रसंग उपस्थित हो जाए तो वह उससे सलक्ष्य बचने का प्रयास करे। ___ अश्लील साहित्य का पठन भी विकार पैदा करने में बहुत बड़ा निमित्त बन सकता है । श्रुति से भी साहित्य का असर गहरा और स्थायी होता है। आज के युवक-युवतियों में अश्लील साहित्य को पढ़ने की प्रवृत्ति बहुत बढ़ रही है । इसके माध्यम से वे अपनी कामवासना को शांत करने का प्रयास करते हैं। पर वे यह नहीं समझते कि यह तो आग में घी सींचने के समान है। घी सींचने से आग बुझने की अपेक्षा अधिक तेज होती है। अश्लील साहित्य पढने से भी कामवासना शांत होने के स्थान पर और अधिक प्रबल हो जाती है । सार-संक्षेप यह कि अश्लील साहित्य का पढना तवेसु वा उत्तम बंभचेरम् १२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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