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रस लेते हैं । यह वृत्ति अच्छी नहीं है। कैसी बात है कि बुराई का ग्रहण शीघ्र होता है, लेकिन अच्छाई का नहीं। मेरी दृष्टि में इसके दो कारण हो सकते हैं--परिस्थिति और अपनी कमजोरी। इन दोनों में भी अपनी कमजोरी ही मुख्य या मूल कारण है । परिस्थिति भी कारण बनती है, परन्तु वह मुख्य कारण नहीं है । यह कैसी बात है कि व्यक्ति दूसरों के दोष देखने के लिए तो सहस्राक्ष बन जाता है पर अपने दोष देखते वक्त दोनों आंखों को भी मूंद लेता है । यही मूल में भूल है । इस भूल का सुधार होना नितांत अपेक्षित है। जरूरी है व्यक्ति-निर्माण
जैसा कि मैंने पूर्व में कहा, मनुष्यों का समूह समाज है। प्रश्न हैं, समाज-कल्याण या समाज-निर्माण की प्रक्रिया क्या है ? मेरे अभिमत में समाज-कल्याण के लिए व्यक्ति-कल्याण या व्यक्ति-निर्माण पर ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए । व्यक्ति-निर्माण के बिना समाज-निर्माण कठिन ही नहीं, असंभव भी है। एक आध्यात्म-साधक या साधु, जिसका जीवन सहज निर्मित होता है, स्वयं साधना करता हुआ हजारों-हजारों के लिए सत्पथ पर चलने की प्रेरणा बनता है, लाखों-लाखों का आध्यात्मिक पथ-दर्शन करता है । पर दुर्भाग्य से वही जब अपने साधना-पथ से भ्रष्ट हो जाता है तो लाखों-लाखों लोगों को गलत रास्ते पर भी ले जा सकता है, क्योंकि जनता में साधु के प्रति सहज विश्वास होता है । यही बात कार्यकर्ताओं के लिए भी है। यदि एक कार्यकर्या का जीवन निर्मित है, सुसंस्कारित है तो वह समाजकल्याण की दिशा में अच्छा कार्य कर सकता है । इसके ठीक विपरीत यदि उसका जीवन-स्तर गिरा हुआ है तो समाज-कल्याण या समाज-निर्माण के कार्य की आशा नहीं की जा सकती। इसलिए प्रत्येक कार्यकर्ता को चाहिए कि वह प्रतिदिन चिंतन करे, आत्म-निरीक्षण करे कि वह समाजकल्याण की दिशा में कदम-कदम आगे बढ़ रहा है या नहीं ? कहीं वह अकल्याण तो नहीं कर रहा है ? गीता का श्लोक 'उद्धरेदात्मनात्मानं, नात्मानमवसादयेत्' तथा जैनागम की 'संपिक्खए अप्पगमप्पएणं' गाथा इसी की प्रेरणा है।
__व्यक्ति-निर्माण के सन्दर्भ में एक बात विशेष रूप से कहना चाहता हूं। यों तो समाज-निर्माण और राष्ट्र-निर्माण के लिए एक-एक व्यक्ति का निर्माण आवश्यक है, पर प्रारम्भ में कुछेक व्यक्तियों को चुना जाना चाहिए । आप देखेंगे कि जितना कार्य एक निर्मित कार्यकर्ता कर सकता है, उतना कार्य करोड़ों रुपये खर्च करने पर भी नहीं हो सकता। जिस प्रकार एक-एक दीपक से सैकड़ों-सैकड़ों दीपक जल सकते हैं, उसी प्रकार उन व्यक्तियों के
समाज-कल्याण की प्रक्रिया
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