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थोप दिया जाए तो वह सुख और आनन्द का हेतु बनना तो कहीं रहा, इसके विपरीत दुःख और अशांति का निमित्त बन जाएगा ।
प्रसंग दिल्ली का
कुछ वर्षों पहले की घटना है। भारत-पाकिस्तान के विभाजन के पश्चात् पाकिस्तान से आए हुए हजारों-हजारों शरणार्थी दिल्ली में थे । उस समय मेरा भी दिल्ली जाना हुआ। मेरे बारे में जानकारी मिलने पर उनमें से बहुत सारे लोग इकट्ठे होकर मेरे पास आए और अपनी दर्दभरी कहानी सुनाते हुए बोले - 'महाराज ! हम बहुत दुःखी हैं । हमारा धन लुट गया । परिवार छूट गया । मकान आदि पाकिस्तान में रह गए। ' और ऐसा कहते-कहते उनकी आंखें छलछला आईं। मैंने कहा - ' भाइयो ! आपकी और मेरी स्थिति एक अपेक्षा से लगभग एक सरीखी ही है । हमारे पास भी एक पैसा नहीं है । परिवार भी हमारे साथ नहीं है । मकान तो बहुत दूर, कहीं चार अंगुल जमीन भी हमारे पास नहीं हैं । पर इस सरीखी स्थिति के बावजूद एक बड़ा अन्तर है । वह यह कि आप रोते हैं और मैं सदा हंसता- खिलता रहता हूं । इसका कारण भी बहुत स्पष्ट है— आपसे ये सारी चीजें छीन ली गई हैं, जबकि हमने स्वेच्छा से इनका परित्याग कर दिया है । आपके दुःख का मूल कारण धन, मकान आदि का न होना नहीं, अपितु इनका छीना जाना है । बन्धुओ ! सुख-दुःख का यही रहस्य है । सिगरेट पीनेवाले से सिगरेट छीन ली जाती है, तो उसे दुःख होता है । इसके विपरीत वही जब स्वेच्छा से उसका परित्याग करता है तो दुःख के स्थान पर आत्मतोष और सुख का अनुभव करता है । इसलिए सुख की चाह रखने वाले हर व्यक्ति को आत्म-संयम का अभ्यास करना चाहिए ।
अणुव्रत आंदोलन के रूप में हमने जो एक व्यापक रचनात्मक कार्यक्रम चला रखा है, उसका घोष है- 'संयमः खलु जीवनम्' अर्थात् संयम ही जीवन है | मेरी दृष्टि में वह कैसा जीवन जो संयत -- आत्म-नियंत्रण से अनुप्राणित न हो । संयम के अभाव में वह दुःख का पर्याय बन जाता है । ऐसी स्थिति में व्यक्ति जीता हुआ भी जीता नहीं, मात्र उसे ढोता है ।
आज के युग की सबसे बड़ी त्रासदी है कि जन-जीवन में संयम का अभाव हो रहा है । इसकी एक भयंकर दुष्परिणति यह है कि नैतिक मूल्य तेजी से विघटित हो रहे हैं । जो भारतवर्ष किसी समय चारित्रिक शिक्षा --- आचार के लिए संसार का गुरु कहलाता था, उसी भारतवर्ष में नैतिकता और चरित्र का दुर्भिक्ष-सा नजर आता है । क्या भारतीय जनों के लिए यह एक गंभीर चिंता का विषय नहीं है । पर चिंता किसी भी समस्या का समाधान भी तो नहीं है । इसलिए चिंता नहीं, चिंतन करने की अपेक्षा है ।
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मानवता मुसकाए
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