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________________ गत संग्रह समाज में अनेक प्रकार की बुराइयों को जन्म देता है। राष्ट्र भी अनावश्यक अति-संग्रह से क्रूर बनता है । क्रूर आक्रांता बनता है। आक्रांता संग्रह करता है । इस प्रकार क्रम चलता रहता है । गीता में भी कहा है ० ध्यायतो विषयान् पुसः, संगस्तेषपजायते । संगात् संजायते कामः, कामात् क्रोधाभिजायते ॥ ० क्रोधाद् भवति संमोहः, संमोहात् स्मृतिविभ्रमः । __ स्मृतिभ्रंशात् बुद्धिनाशो, बुद्धिनाशात् प्रणश्यति ॥ शांति का मंत्र बहुत-सारे लोग इस भ्रांति को पालते रहते हैं कि धन शांति का साधन है । इसलिए भी वे धन-संग्रह के लिए सतत प्रयत्न करते रहते हैं । इस प्रयत्न में वे अर्थार्जन के लिए साधन-शुद्धि की बात को सर्वथा अनदेखी कर देते हैं । येन-केन-प्रकारेण अपनी तिजोरियां भरने की चेष्टा करते हैं। परन्तु धन से शांति-प्राप्ति की उनकी भ्रांति बहुत दिन नहीं टिकती । वह टूटने लगती है। पिछले दिनों की ही बात है। कई अमेरिकन लोग मेरे पास आए और उन्होंने मुझसे शांति के पथ के बारे में जिज्ञासा की। मैंने पूछा-----'आप लोग तो अत्यन्त वैभवशाली हैं, फिर भी क्या शांत नहीं हैं ?' उन्होंने उत्तर दिया'शांत कहां, हम तो ज्यादा अशांत हैं। यदि शांति की अनुभूति करते तो आपसे शांति का मार्ग पूछते ही क्यों ।' मैंने फिर कहा--'लोगों की तो धारणा है कि आप सुखी हैं, शांति का जीवन जीते हैं, पर इसके विपरीत आप तो कह रहे हैं कि हम अधिक अशांत हैं।' ___ इस प्रसंग से यह बहुत स्पष्ट हो जाता है कि धन का शांति से सम्बन्ध नहीं है, दूर का भी कोई सम्बन्ध नहीं है । फिर शांति का साधन क्या है ? शांति का एकमात्र साधन है-आत्म-संयम । आत्म-संयम का अर्थ है --अपने द्वारा अपने लिए अपना नियंत्रण । । हालांकि नियंत्रण कारागृह में भी होता है, पर वह स्वयं के द्वारा नहीं होता, दूसरों के द्वारा होता है । यही कारण है कि उसमें शांति नहीं मिलती । आप जानते ही हैं, जब खाद्य-पदार्थों पर कंट्रोल था, तब कैसी स्थिति थी। लोग कितनी कठिनाई और दुःख का अनुभव करते थे । दुःख की अनुभूति के साथ-साथ वह कंट्रोल तो लोगों के अनैतिक बनने में भी बहुत बड़ा निमित्त कारण बना था। इसलिए हम इस तथ्य को हृदयंगम करें कि नियंत्रण मात्र अच्छा नहीं है। केवल आत्म-नियंत्रण या आत्म-संयम अच्छा है । आप देखें, साधु-संत स्वेच्छा से खाद्य-संयम, वाक-संयम, गति-संयम करते हैं । यह स्वैच्छिक संयम उनके लिए सुख और आनन्द का हेतु बनता है । लेकिन यही खाद्य-संयम, वाणी-संयम और गति-संयम यदि किसी पर बलात् सुख और शांति का आधार १०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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