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दस
पहुंच चुके हैं । यह १९ वां पुष्प मानवता मुसकाए के रूप में प्रस्तुत है। सन् १९५८ में प्रकाशित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं की विकीर्ण सामग्री इसमें संकलित की गई है। जिन साधु-साध्वियों एवं कार्यकर्ताओं का इस सामग्री के संग्रहण एवं संचयन में पुरुषार्थ लगा है, उनके सहयोग का प्रमोद भाव से मूल्यांकन करता हूं।
गणाधिपति पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों को सुन-पढकर अनगिन लोगों की सुषुप्त मानवता अंगड़ाई लेकर जागी है, मुसकराई है। मानवता मुसकाए के प्रवचन भी मानव-मानव की मानवता को झकझोर कर जगाने एवं उसके मुसकराने में योगभूत बनेंगे, ऐसी आशा करता हूं।
भिक्षु-विहार जैन विश्वभारती, लाडनं १ फरवरी १९९७
--मुनि धर्मरुचि
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