________________
प्रकाशकीय
गणाधिपति श्री तुलसी एक प्रखर प्रवचनकार एवं सटीक व्याख्याकार हैं । वे अध्यात्म के गूढ़तम विषयों को अपनी वाणी से इतना सरल व संग्राह्य रूप में प्रस्तुत करते हैं कि श्रोताओं को तद् विषयक चिन्तन-मनन के लिए बाध्य कर देते हैं, जिससे उनके व्यक्तित्व विकास का मार्ग प्रशस्त हो जाता है ।
जैन विश्वभारती द्वारा प्रकाशित साहित्य की श्रृंखला में प्रवचनसाहित्य का प्रकाशन एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है । गणाधिपतिश्री तुलसी के प्रवचनों के संकलन 'प्रवचन पाथेय ग्रन्थमाला' के पुष्पों के रूप में प्रकाशित हो रहे हैं । ग्रन्थमाला का उन्नीसवां पुष्प 'मानवता मुसकाए' के नाम से प्रकाशित हो रहा है । यह पुष्प सन् १९५८ में प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं में उपलब्ध सामग्री से तैयार किया गया है । इसमें कुल ८० प्रवचन संकलिन हैं । बहुत पुराने होने के उपरान्त भी ये प्रवचन हृदय को छूने की अर्हता की अपनी मौलिक गुणात्मकता को ज्यों-की-त्यों सुरक्षित रखे हुए हैं । उसमें कहीं कोई न्यूनता नहीं आई है ।
मुनिश्री धर्मरुचिजी ने इस ग्रन्थमाला के सम्पादन में अपने एकनिष्ठ श्रम का नियोजन कर जिस कर्तव्यबुद्धि का परिचय दिया है, वह प्रेरक एवं स्तुत्य है । उसके लिए हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं ।
प्रकाशन में श्री फतह चैन भंसाली, ट्रस्टी - श्रीमती झमकूदेवी भंसाली मेमोरियल ट्रस्ट, सुजानगढ़ - कलकत्ता, सी० आर० बी० कैपिटल मार्केट्स लि का जो आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ है, उसके लिए शतशः धन्यवाद ।
आशा है, पूर्व संकलनों की तरह यह संकलन भी पाठकों के लिए अत्यंत रुचिकर एवं शिक्षाप्रद सिद्ध होगा ।
जैन विश्वभारती, लाडनं ( राज० ) ५ फरवरी १९९७
Jain Education International
हनुमानमल चिंडालिया
मंत्री जैन विश्वभारती
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org