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________________ ४७. सुख और शांति का आधार शांति : कहां और कैसे ? यह निर्विवाद सत्य है कि मनुष्य शांति चाहता है। पर शांति का सही मार्ग उसके हाथ नहीं लगा। उसकी धारणा है कि शांति के लिए प्रचुर खाद्य-सामग्री, वस्त्र और आधुनिक वैज्ञानिक सामग्री आवश्यक है । किन्तु उसकी यह धारणा सही नहीं है। जिन देशों में ये सारी सामग्रियां उपलब्ध हैं, वे भी शांति की खोज में हैं। इससे स्पष्ट है कि शांति भौतिफ साधनों में नहीं है । पुराने महर्षियों ने अपनी तपःपूत साधना से अनुभव किया और बताया कि शान्ति आत्मा में है और उसकी प्राप्ति का साधन है अहिंसा या समता । वैज्ञानिकों ने दुनियां को पदार्थवादी बना दिया। लेकिन वे स्वयं भयत्रस्त हैं । इससे सिद्ध है, शांति का साधन भौतिक पदार्थ नहीं, अपितु अहिंसा या समता है। अहिंसा का अर्थ है स्वयं निर्भय होना और दूसरों को अभयदान देना । मूल्यवान् है अभयदान भारत में दान की परम्परा कन्यादान, गोदान, सम्पत्तिदान आदि के रूप में प्राचीन काल से चलती आ रही है। लेकिन अभयदान से बढकर कोई दान नहीं है । कौन दे सकता है अभयदान ? मेरी दृष्टि में अभयदान वही दे सकता है, दूसरों को भयमुक्त वही बना सकता है, जो स्वयं अभय होता है। ___ शस्त्रों के परीक्षण से अन्य राष्ट्र भयभीत हैं। यदि आज कोई राष्ट्र अभय देना चाहे, तो उसे स्पष्ट घोषणा करनी होगी कि वह शस्त्रों का परीक्षण नहीं करेगा। परन्तु निःशस्त्रीकरण की चर्चा बहुलांश में वे राष्ट्र करते हैं, जिनके पास शस्त्र-शक्ति सीमित है । जिनके पास शस्त्रों का असीम संग्रह है, वे निःशस्त्रीकरण की चर्चा को अधिक महत्व नहीं दे रहे हैं, जबकि उन्हें अधिक देना चाहिए। कहा भी है-'मार सके मारे नहीं, ताको नाम मर्द ।' शस्त्र-शक्ति होने के उपरांत उसका उपयोग न करने की घोषणा हो, तब वास्तव में अभयदान है। कोई देश बड़ा है, कोई छोटा है । परन्तु इकाई रूप में सब समान सुख और शांति का आधार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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