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________________ उपरान्त भी वे उत्साह के साथ आते हैं। यथाशक्ति सेवा भी करते हैं। कई केवल दर्शन, सेवा, व्याख्यान आदि से ही संतुष्ट रहते हैं। कुछ-कुछ विशेष समय लेते हैं। यथाशक्ति उन्हें समय देता भी हूं। किन्हीं-किन्हीं को समय नहीं भी दे पाता । यह भी संभव है कि अपनी धुन में रहने के कारण किसीकिसी की वंदना भी स्वीकार न की हो। कभी-कभी तो लोग वंदना करके जाने लगते हैं, तब अचानक उनकी ओर ध्यान जाता है और मैं वंदना स्वीकार करता हूं। तब वे भाई-बहिन वापस आते हैं और मैं उनसे बात करता हूं। मेरे वे दो शब्द उनके लिये पाथेय बन जाते हैं और वे अपने आगमन को सार्थक मानते हैं। उस समय मुझे अत्यंत दर्द होता है, जब मैं बहनों को परस्पर इस आशय की बातें करते सुनता हूं कि एक मास सेवा की, डेढ मास सेवा की,... पर आचार्यश्री से दो शब्द भी न बोल सकीं। आज मैं सभी श्रावक-श्राविकाओं से खमत-खामणा करता हूं। यह मेरे अन्तर् हृदय की आवाज है, केवल प्रदर्शन या कृत्रिमता नहीं। केवल प्रदर्शन और कृत्रिमता हो तो उसका मूल्य ही क्या है। मैं आप लोगों से भी यही कहता हूं कि आप सभी परस्पर हृदय खोल कर खमतखामणा करें। अपने बच्चों में भी संस्कार डालने का प्रयत्न करें। संस्कार डालने का मार्ग है-पाक्षिक खमत-खामणा । पाक्षिक दिन आप पहल कर स्वयं खमत-खामणा करें और उनको उसका अर्थ समझाएं। यदि विशुद्ध रूप से खमत-खामणा की पद्धति को समाज अपनाए तो मेरा ऐसा विश्वास है कि भविष्य में वैमनस्य संसार से विदा हो सकता है। मानवता मुसकाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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