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से कोई स्वस्थ नहीं हो जाता, फिर भी मेरे दो वाक्य कइयों के लिए पाथेय बन जाते हैं और वे शांति महसूस करते हैं, ऐसा अनुभव मुझे जब-तब होता रहता है। इस दृष्टि से मेरा पूछना आवश्यक बन जाता है।
आज मुझे रह-रहकर कई बातें याद आ रही हैं। अन्तरात्मा की आवाज अनायास ही निकल रही है। साधुओ! यात्रा में तुम लोग मेरे साथ रहते हो। किसी-किसी के चलने से पेट में दर्द भी हो जाता होगा। यात्रा में कौन थक गया है, चलने की किसी की शक्ति है या नहीं, इन बातों पर मैं बहुधा ध्यान नहीं दे पाता। केवल आदेश देता हूं---'तैयार हो जाओ। दस-बारह मील चलना है ।' ऐसी स्थिति में किसी को कठिनाई/असुविधा भी हो सकती है।
कभी-कभी किसी से आवश्यक बात भी नहीं कर पाता हूं। रात में देर से सोने के कारण मेरे आस-पास सोने वालों की नींद का बाधक भी बन जाता हूं। प्रसंग आ गया तो एक बात और बता दूं। कभीकभी तो आवश्यक कार्यवश प्रहर रात्रि के बाद दो-दो घंटे और निकल जाते हैं। तब यह सोचकर कि दूसरों की नींद में कुछ समय के लिए और बाधक बन जाऊंगा, बैठे-बैठे माला-जाप करने की बात को भी गौण कर देता है।
- साधु गोचरी लेकर आ जाते हैं और मुझे दिखाने के लिए खड़े रहते हैं। मैं कार्य में व्यस्त होने के कारण उनकी ओर ध्यान नहीं दे पाता। उस समय भूल जाता हूं कि छोटे साधुओं को भूख लग गई होगी। वई बार विशेष प्रकरण चलने से व्याख्यान में भी देर हो जाती है। इससे भी साधुसाध्वियों को असुविधा हो सकती है।
पास में रहें या दूर रहें, आचार्य के नाते गण के सभी शिष्यों का योगक्षेम करना मेरा कर्तव्य है। उपेक्षा का भाव न होने पर भी कार्यव्यस्तता के कारण कभी किसी की ओर अपेक्षित ध्यान नहीं भी दे पाता। आज मैं सभी साधु-साध्वियों से ज्ञात-अज्ञात में हुए किसी भी प्रकार के अप्रिय/कटु व्यवहार के लिए हृदय की ऋजुता और नम्रता से खमतखामणा करता हूं। वे मुझे क्षमा दें, मैं उन्हें क्षमा देता हूं। इसी प्रकार जो साधु-साध्वियां यहां नहीं हैं, दूर-दूर स्थित हैं, उन सबसे भी यहां बैठा हुआ शुद्ध मन से खमत-खामणा करता हूं। मेरी प्रकृति ऐसी नहीं कि मैं किस बात की गांठ बांधकर रखू । कभी किसी के प्रति मन में कोई विचार आत है तो उसे कह देता हूं। वर्षों तक किसी बात की गांठ बांधकर रखने प्रकृति को मैं जघन्य- वृत्ति मानता हूं। यह वृत्ति व्यक्ति के लिए अत्यन्त घातक है
श्रावक-श्राविकाएं दूर-दूर से दर्शन-सेवा के लिए आते हैं। सबर्क आर्थिक स्थिति समान नहीं होती। रेल की भी मुसीबतें होती हैं। इसवे
खमतखामणा
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