SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६. खमतखामणा खमतखामणा का मूल्य लोग कहते हैं--देश में अर्थ और नैतिकता की कमी है। पर मुझे लगता है, आज इससे भी बढकर कमी है मैत्री की। आज जहां भी देखें, इसका अभाव-सा लगता है। आज एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की प्रगति को सहन नहीं करता। इतना ही नहीं, वह उसके पतन की बात भी सोचता है। एक संस्था दूसरी संस्था पर छींटाकशी और आक्षेप करती नहीं सकुचाती । वैमनस्य की भावना उत्तरोत्तर वृद्धिंगत हो रही है। इन बुराइयों का बीज हैपरस्पर में मैत्री, समन्वय और भ्रातृत्व का अभाव । खमत-खामणा मैत्री, समन्वय और भ्रातृत्व का पोषक-तत्त्व है। खमतखामणा : क्या? कैसे ? खमत-खामणा का अर्थ है--स्वयं क्षमा मांगना और दूसरों को क्षमा देना । इससे आत्मा हल्की होती है और विचारों में पवित्रता आती है। प्रत्येक को प्रत्येक के साथ खमत-खामणा करना चाहिए। इसमें संकोच अपेक्षित नहीं है । छोटे-बड़े का प्रश्न भी अप्रासंगिक है । पहले और पीछे का सवाल भी गौण है। जो व्यक्ति जिस क्षेत्र में कार्य करता हो, जिनके सम्पर्क में हो, जिनके साथ व्यवहार चलता हो, उन सबसे खमत-खामणा करना चाहिए । प्रतिपक्षियों के साथ तो अवश्य करना चाहिए । साक्षात न हो सके तो अपने स्थान पर स्थित ही नामोल्लेखपूर्वक करना चाहिए। खमत-खामणा में जाति, पद, लिंग आदि का प्रश्न नहीं उठना चाहिए। ध्यान रहे, खमतखामणा वही कर सकता है, जिसमें ऋजुता हो। परन्तु ऋजुता का अर्थ झुकना नहीं है। वह तो आत्मा की खुशबू है, गुण है। आज मैं वर्षभर का चिंतन करके हल्का बनना चाहता हूं। पर इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं कि आज गत वर्ष का चिंतन करके हल्का बन और भविष्य में वैसा ही करू । खमतखामणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy