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बहन के अनुरोध में श्रद्धाभरा हृदय था। मैं उसे टाल नहीं सका। घर में कदम रखते ही मैंने देखा कि एक ओर एक व्यक्ति सकुचाता-सा खड़ा है। बहन ने शिकायत के स्वर में कहा- 'महाराज ! ये मेरे पति हैं। बहुत तम्बाकू पीते हैं। इन्हें उपदेश दीजिए। तम्बाकू छुड़ाइये ।' बहन के हृदय में कितनी तड़प थी, अपने पति के सुधार के लिए ! मैंने उसके पति से पूछा'क्यों, ऐसा करते हो?' वह हाथ जोड़े खड़ा था। अटकते-अटकते बोला'इतनी ज्यादा तो नहीं..." पीता।' छूटते ही बहन प्रतिवाद के स्वर में बोली-'क्या कहते हैं, इतन, ज्याद तो नहीं पीता। तम्बाकू की दुर्गध से मेरा घर गंधिया रहा है। ये जितनी तम्बाकू पीते हैं, उसे छोड़ दें, तो उसके बचे हुए पैसों से मैं घर का सारा खर्च चला सकती हूं।' मैंने उस व्यक्ति को समझाया, तम्बाकू की बुराइयां बताई । परिणामतः वह तम्बाकू छोड़ने की प्रतिज्ञा के लिए उद्यत होने लगा। तभी मैंने कहा'संकोच और दबाव से ऐसा नहीं करना है। यदि सचमुच ही तुम्हारे मन में तम्बाकू के प्रति घृणा उत्पन्न हो गई हो, तभी ऐसा करना।' वह बोला'आपके उपदेश का मुझ पर असर हुआ है । तम्बाकू पीने के प्रति सचमुच मेरे मन में घृणा पैदा हो गई है। मुझे आप प्रतिज्ञा करवाएं।' इस प्रकार हृदयपरिवर्तन की भूमिका पर उसने तम्बाकू न पीने का संकल्प किया।
ऐसी अनेक घटनाएं जब-तब हमारी पद-यात्राओं में घटती रहती हैं। ये घटनाएं दुर्व्यसनों में ग्रस्त आज के मानव का स्पष्ट चित्र उकेरती हैं। अपेक्षा है, जन-जन की संयम-चेतना जागे । वह दुर्व्यसनों-बुराइयों से छूटने के लिए संकल्पित हो।
मानवता मुसकाए
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