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________________ ४५. मानव की घोर पराजय वही सच्चा धीर है ___ आज का मानव यह कहते हुए सुना जाता है कि वह नहीं चाहता, बेईमानी और अनैतिकता का आचरण करे। परन्तु क्या किया जाए, परिस्थितियां उसे ऐसा करने के लिए बाध्य करती हैं। उसे लाचार हो प्रतिकूल पथ पर जाना पड़ता है । मैं इस कथन में उसकी आत्म-दुर्बलता का दर्शन करता हूं । माना कि परिस्थितियां जीवन में कठिनाइयां पैदा करती हैं। पर सच्चाई के मार्ग पर चलने के दृढसंकल्पी-~-मनस्वी क्या कभी परिस्थितियों से दबे हैं। सही माने में धीर और कर्मठ वह है, जो प्रतिकूल परिस्थितियों को रौंदता हुआ सत्य और न्याय के मार्ग पर आगे बढता जाये । परिस्थितियों की दुहाई देकर न्याय, सचाई पर स्थिर न रह सकने की बात कहने वाले सचमुच हीनबल हैं, कायर हैं, असाहसिक हैं। मेरी दृष्टि में परिस्थितियों के आगे घुटने टेकना मानव की घोर पराजय है। - मानव में कुछ इस प्रकार की मनोवृत्ति आज व्याप रही है कि अपनी दुर्बलता को ढकने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाता रहता है । अलबत्ता कुछ अनैतिक वृत्तियों के लिए परिस्थितियों को भी कारण माना जा सकता है, क्योंकि उन्हें परास्त करने के लिए सुदृढ आत्मबल और साहस अपेक्षित होता है। पर बहुत-सारी दुष्प्रवृत्तियां तो ऐसी हैं, जिन्हें केवल व्यसनरूप में मानव स्वीकार करता है । मैं आप से ही पूछ्, शराब, भांग,गांजा, चरस एवं तंबाक जैसे कुव्यसनों में मानव किन परिस्थितियों से बाध्य होकर गिरता है ? स्पष्ट है, मिथ्या और कल्पित मस्ती एवं आनन्द के लिए ही तो वह ऐसा करता है । तब मुझे कहने दीजिये कि यह उसकी भयंकर भूल है। ऐसा कर मानव अपने जीवन, स्वास्थ्य और धन को वृथा गंवाता है । मेरा घर पवित्र करें मैं यात्रा पर था। मार्गवर्ती एक गांव से मैंने प्रस्थान किया। अनेक लोग साथ थे । ज्यों ही मैं एक घर के पास से होकर गुजरा, एक बहन ने अनुरोध किया---'महाराज ! मेरे घर को अपने चरण-स्पर्श से पवित्र करें।' मानव की घोर पराजय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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