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४२. सुख का उत्स
वर्तमान को देखें
. आज चारों ओर चन्द्र लोक की यात्रा की बातें चल रही हैं । नये-नये आविष्कारों की भरमार है । लोगों की कल्पनाएं जाने कहां-कहां दौड़ रही हैं । पर मैं आपसे कहना चाहूंगा कि आज आप एक बार इन सब कल्पनाओं को छोड़कर अपने वर्तमान के धरातल पर आयें । यद्यपि केवल वर्तमान का ही चिन्तन करना नास्तिक दर्शन–चार्वाक दर्शन की मान्यता है। पर आप डरें नहीं, मैं आपको नास्तिक बनाने नहीं जा रहा हूं। हमारे शास्त्रों में भी चार्वाक दर्शन को एक दर्शन माना गया है। पर हमारी दृष्टि में उसका मूल्य सापेक्ष ही है । अतीत और अनागतसम्बद्ध वर्तमान हमारे चिंतन का विषय रहा है । आज भी हमें जिस वर्तमान का चिंतन करना है, वह भूत और भविष्य दोनों से सम्बद्ध ही है । मैं ऐसे धर्म में विश्वास करता हूं
कुछ लोग भविष्य की कल्पना में वर्तमान को भूल जाते हैं। वे परलोक को सुधारने के लिए इस लोक को बिगाड़ने में भी विश्वास करते हैं। पर मेरी दृष्टि में वह धर्म वास्तव में धर्म नहीं है, जो इस लोक को बिगाड़े और परलोक को सुधारे । मैं तो ऐसे धर्म में विश्वास करता हूं, जो इस लोक को भी सुधारे और परलोक को भी सुधारे । भविष्य की कल्पना में वर्तमान की उपेक्षा कर देना धर्म का लक्षण नहीं है । यद्यपि यह सही है कि तपस्या में कुछ काय-क्लेश होता है । पर मैं पूछना चाहता हूं, ऐसा काय-क्लेश तो किस काम में नहीं होता? क्या पैसा कमाने में कष्ट नहीं होता? मैंने एक धनाढ्य राजस्थानी भाई से पूछ लिया-'क्यों भाई ! तुम्हारे पास तो खूब पैसा है, तुम तो आराम में होगे?' वह बोला-'महाराज ! मुझे आराम कहां। दिनभर चिंताएं सताती रहती हैं । पहले जब मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं थे तो सोचा करता कि लखपति लोग सुख से रहते हैं। मैं भी क्यों न लखपति बन जाऊं । पर अब सोचता हूं, आज से पहले कहीं अधिक सुखी था।' वस्तुत: व्यक्ति जितना अधिक अर्थ का संग्रह करता है, उसके सिर पर उतना ही अधिक बोझ भी बढ़ जाता है। आप सोचते होंगे, नेता लोग बड़े सुखी हैं।
सुख का उत्स
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