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________________ ४१. दुव्यसनो आर कुरूाढया का मार दुर्व्यसन जीवन के लिए अभिशाप हैं। जो व्यक्ति दुर्व्यसनों का दास बन जाता है, मानना चाहिए कि उसने अपने जीवन में दुःख को आमन्त्रण दे दिया है, सुख को विदा कर दिया है। उसके बुरे दिन आ गए हैं। बहुत बार प्रश्न आता है, किसान कड़ी धूप में मेहनत करता है, ऐड़ी से चोटी तक पसीना बहाता है, फिर भी भूखा क्यों ? मेहनत से कमाने वाला दरिद्र क्यों ? खरी कमाई करने वाला दीन-हीन क्यों ? मुझे तो लगता है कि वह इधर कमाता है और उधर गमाता है । तम्बाकू उसकी गरीबी का एक कारण है। शराब की बोतल भी उसकी गरीबी का एक बड़ा कारण है। तुम्हीं बताओ, शराब पीकर बेभान बन जाना, पागल बन जाना क्या मानवता है ? ओसर की कुप्रथा का भी किसान की गरीबी में कम योगदान नहीं है। कर्जदार बनकर भी वह बाप का ओसर करेगा । खेती की जमीन गिरवी रखेगा, बाल-बच्चों की रोटी छीनेगा, पर ओसर तो करेगा-ही-करेगा । इस कुप्रथा के कारण उसकी पीढियां-दर-पीढियां कर्ज में डूब जाती हैं । इसी प्रकार दहेज और ठहराव जैसी कुप्रथाएं भी अत्यन्त घातक हैं। एक-एक लड़की के लिए बीस-बीस हजार देना पड़ता है। बेचारे मां-बाप परेशान हो जाते हैं । उनके प्राण कंठों में आ जाते हैं। यदि योग-संयोग से किसी के चार-पांच लड़कियां हो जाएं, फिर तो कहना ही क्या। आज समाज इन कुरूढियों से जर्जरित हो रहा है। जब तक ये कुरूढियां समाप्त नहीं होतीं, समाज के विकास का मार्ग प्रशस्त नहीं हो सकता। वह ऊपर नहीं उठ सकता । चूंकि समाज की मूल इकाई व्यक्ति है, इसलिए व्यक्ति-व्यक्ति को जागृत होना होगा, इन आत्मघाती कुरूढियों की जंजीर को तोड़ गिराने के लिए संकल्पबद्ध और सचेष्ट होना होगा। तुम भी इस समाज के अंग हो। इसलिए तुम्हारे में से प्रत्येक को इस दिशा में सार्थक प्रयास करना चाहिए। अणुव्रत-आन्दोलन इस दिशा में तुम्हारा पथ-दर्शन करता है। इसके पथदर्शन में कदम-कदम बढते चलो। स्वस्थ समाज-संरचना की दिशा में यह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अभियान होगा। मानवता मुसकाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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