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________________ ४०. मैत्री : विश्व-शांति का आधार 'मैत्री दिवस' की पीठिका ___ व्यक्ति-व्यक्ति के विचारों और स्वार्थों में अन्तर हो सकता है। पर इससे आपसी सम्बन्ध कटुतापूर्ण हों-यह आवश्यक नहीं है। प्रत्येक विचार में अनेकांत दष्टि से कुछ समन्वय खोजा जा सकता है, तब फिर उसके लिये लड़ने की क्या आवश्यकता है। पर आज कुछ विचित्र-सा लग रहा है। शांति के लिये युद्ध लड़े जा रहे हैं ! संसार दो-दो महायुद्धों को देख चुका है। केवल महायुद्धों को ही क्यों, उनके घातक परिणामों को भी तो देख चुका है। वह नहीं चाहता कि आज फिर शांति के नाम पर महान् संहार हो । प्रायः लोग युद्ध नहीं चाहते, तथापि कुछ इने-गिने लोग विश्व को युद्ध के भीषण दावानल में ढकेलना चाहते हैं। भारत के राष्ट्रपति डा. राजेन्द्रप्रसाद ने 'मैत्री दिवस' के संदर्भ में अपने विचार प्रकट करते हुए कहा-'इस बार यदि युद्ध हुआ तो वह बड़ा भयंकर होगा। आज तक की मानव-संस्कृति, जो कि अनेक प्रयत्नों से निर्मित हुई है, एक बारगी नष्ट-भ्रष्ट हो जाएगी। अतः हम चाहते हैं कि फिर से युद्ध का अवसर ही न आये। इसके लिये आवश्यक होगा कि प्रत्येक राष्ट्र अपनी समस्याओं को मैत्रीपूर्ण ढंग से हल करे । अतः आज के युग में तो 'मैत्री दिवस' के आयोजन का और भी महत्व बढ जाता विरोध का उत्स कोई कह सकता है--आप विश्व-मैत्री की बातें कर रहे हैं। पर आज तो राष्ट्र-राष्ट्र, प्रांत-प्रांत, समाज-समाज, परिवार-परिवार, घर-घर और व्यक्ति-व्यक्ति में विरोध की भावना व्याप्त है । तब फिर विश्व का प्रश्न ही कैसा । इस संदर्भ में मैं कहना चाहूंगा कि विरोध की भावना दो नहीं, एक ही होती है। चाहे वह छोटे क्षेत्र में हो, चाहे बड़े क्षेत्र में। बाहरी उपकरण उसे उभारते हैं, पर मूल में विरोध-भावना व्यक्ति की अपनी आत्मा की ही उपज होती है। उसे उन्मूलित करने का एक ही मार्ग है और वह यह कि लोग मैत्री के मूल को समझे और उसे अपने जीवन में स्थान दें। ८४ मानवता मुसकाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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