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३९. इन खाइयों को पाटा जाए*
आज व्यक्ति-व्यक्ति में नहीं, राष्ट्र-राष्ट्र के बीच तनाव बढ़ रहा है। उसे मिटाने का एक सीमा तक प्रयत्न किया जा रहा है। प्रयत्नस्वरूप संभव है, एक देश का प्रधानमंत्री, दूसरे देश के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के निमंत्रण पर उसके देश में जाये । यह भी संभव है कि उसका शानदार स्वागत हो। फिर यह भी संभव है कि आपस में शान्ति-सन्धियां स्थापित हो जाएं । पर जब स्वार्थ आपस में टक्कर खाते हैं तो मैत्रीयुक्त भावनायें और सन्धियां किनारा ले लेती हैं, खाइयां फिर पड़ जाती हैं । राष्ट्रसंघ की स्थापना इन्हीं खाइयों को पाटने के लिए हुई थी। पर वह भी अपने उद्देश्य में पूर्ण रूप से सफल नहीं हुआ। ऐसे समय में हमारा भी कर्तव्य है कि हम युद्धग्रस्त मानव को मैत्री की भावना दें । इसी दृष्टि से पिछले वर्ष दिल्ली में मंत्री दिवस का प्रथम आयोजन किया गया। इस वर्ष भी काफी बड़े रूप में यह आयोजन अनेक स्थानों पर मनाया गया। इसका एकमात्र लक्ष्य है कि मानव को एक स्वार्थमुक्त मैत्री की भावना मिले ।
___ अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए हथियारों को निमंत्रण देने की आवश्यकता नहीं। दुनिया दो-दो महायुद्धों और उनके परिणामों को भुगत चुकी है। वह नहीं चाहती की मानव का संहार हो, उसका नाममात्र भी न रहे । जब सभी लोग शांति की पुकार करते हैं तो क्यों कुछेक राष्ट्रनेता अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए युद्ध व अशान्ति को बुलावा दे रहे हैं ।
- व्यक्तियों का समूह ही राष्ट्र है। व्यक्तियों के अलावा राष्ट्र का और अस्तित्व है ही क्या। जो भावना व्यक्ति को दी जाएगी, वही राष्ट्रों को दी जाएगी। दोनों के रास्ते दो नहीं हो सकते। दूसरी बात यह है कि राष्ट्रों में विरोध राष्ट्रीय दृष्टि से होता है, व्यक्तिगत दृष्टि से नहीं । युद्ध की भावना राष्ट्र से नहीं, व्यक्ति के उर्वर मस्तिष्क से निकलती है। अत: मैं चाहता हूं कि प्रहार मूल पर ही हो, ताकि युद्ध की भावना ही न पनपे ।
*मैत्री दिवस पर प्रदत्त संदेश
मानवता मुसकाए
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