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________________ अध्यात्म और विज्ञान ७९ इसका अर्थ यह होता है कि कुत्ता आदमी से अधिक ज्ञानी है। आश्चर्य होता है। पर नियम को समझ लेने पर इसमें आश्चर्य जैसी कोई बात नहीं है। कुत्ते की घ्राणशक्ति बहुत तीव्र होती है। गंध के आधार पर वह अपराधी को पकड़ने में समर्थ हो जाता हैं। सत्य का अर्थ है-नियम-प्राकृतिक नियम और चेतना के नियम । वस्तु-जगत् के नियम, चेतना-जगत् के नियम-ये दो प्रकार के नियम हैं। वस्तु-जगत् के नियमों को जानना अस्तित्वादी सत्य है और चेतना-जगत् के नियमों को जानना उपयोगितावादी सत्य है, साधना का सत्य है। ___कर्मशास्त्र पूरा का पूरा नियमशास्त्र है। जो कर्म किया जाता है, वह अमुक-अमुक समय तक अपरिपाक, अनुदय की स्थिति में रहता है। उसे अबाधाकाल कहा जाता है। जब वह उदय में आता है तब फल देना प्रारम्भ करता है। इस प्रकार कर्म का शास्त्र चेतना के नियमों का शास्त्र है। ___ अनेक शारीरिक और मानसिक बीमारियां ऐसी होती हैं, जिनको डॉक्टर भी नहीं पकड़ पाते और यंत्र भी उन्हें नहीं पकड़ पाते। सब व्यर्थ हो जाते हैं। इसका कारण है कि वे बीमारियां शारीरिक नहीं, मानसिक नहीं किन्तु कर्म से निष्पादित हैं। इस तथ्य को आयुर्वेद के आचार्यों ने बहुत ही सूक्ष्मता से पकड़ा। उन्होंने कहा-बीमारी केवल शरीर के दोषों से ही नहीं होती। सारी बीमारियां वात, पित्त और कफ के दोषों से ही नहीं होती। बीमारी केवल बाहरी वातावरण से ही पैदा नहीं होती। बीमारी का एक कारण कर्म भी है। जो संस्कार किया है, वह भी बीमारी का कारण बनता है। जिस बीमारी का कारण कर्म होता है, वह बीमारी दवाइयों से ठीक नहीं होती। कोई भी वैद्य या डॉक्टर उसे नहीं मिटा सकता। उसकी सही दवाई है प्रायश्चित्त । यह सूक्ष्म चेतना का नियम है। आज सर्वत्र द्वन्द्व है। भीतर के प्रकंपन और प्रकार के हैं, बाहर भिन्न प्रकार का प्रदर्शन हो रहा है। भीतर और बाहर में जो दूरी है, वह मिटनी चाहिए। यह दूरी तब मिट सकती है, जब दृष्टिकोण परिष्कृत हो। एक प्रकार से यह सत्य गणित का सत्य है। आज के व्यावहारिक जगत् में गणित का सत्य सबसे बड़ा सत्य है। गणित में कोई भूल नहीं होती । ज्योतिष विज्ञान, गणित विज्ञान-ये सारे नियमों की व्याख्या करने वाले विज्ञान हैं। विज्ञान की बहत सारी बातें आश्चर्यजनक लगती हैं। एक रेशमी कपड़ा है। उस पर अंगारा रखा और उस अंगारे पर मूंगा रख दिया। अब वह अंगारा रेशमी कपड़े को कैसे नहीं जलाएगा? आश्चर्य उसी को होगा जो नियम को नहीं जानता। यह सामान्य बात है कि मूंगे में ताप-अवशोषण की क्षमता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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