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जैन दर्शन और विज्ञान ज्ञात के आधार पर इतने बड़े अज्ञात को अस्वीकार करना कैसे संभव होगा? अध्यात्म के आचार्यों ने अज्ञात पर भी बहुत अनुसंधान किया है। उन्होंने अपनी अन्त:दृष्टि और अन्त:प्रेरणा से अज्ञात को समझने का बहुत बड़ा प्रयत्न किया है। अध्यात्म का यह बिन्दु हमें उपलब्ध है। आज से नहीं, किसी वैज्ञानिक की पुस्तक से नहीं , किन्तु हजारों-हजारों वर्ष पहले उन घोषणाओं से हम परिचित हैं कि प्रत्येक प्राणी में, न केवल मनुष्य में, किन्तु प्रत्येक प्राणी में अनन्त शक्ति विद्यमान है। अनन्त चतुष्टयी जैन दर्शन में बहुत प्रसिद्ध है। अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त शक्ति और अनन्त आनन्द-यह अनन्त चतुष्टयी है। वैदिक साहित्य मे सत्, चित् और आनन्द बहुत प्रसिद्ध है।
__अध्यात्म के आचार्यों ने मनुष्य के भीतर की गहराइयों में जाकर झांका, उस अनन्त चतुष्टयी में कुछ डुबकियां लेकर जिन मूल्यों की प्रतिष्ठा की, जिन तथ्यों का प्रतिपादन किया और मनुष्य के व्यक्तित्व का चित्र उभारा, यदि वह हमारे सामने होता तो शायद मन की शान्ति का प्रश्न, शन्ति की समस्या जटिल नहीं होती। उन्होंने व्यक्ति को समझा, उस आलोक में देखा और परखा कि भाव-शुद्ध के बिना मन की शंति का प्रश्न कभी समाहित नहीं हो सकता। हमारे विकास का, जीवन के विकास का सबसे बड़ा आधार है भाव-शुद्धि । एक धारा हमारे भीतर है भाव-अशुद्धि की और दूसरी धारा प्रवहमान है भाव-शुद्धि की। दोनों धाराएं निरन्तर प्रवहमान हैं हमारे व्यक्तित्व में। जब-जब हम भाव की अशुद्धि की धारा से जुड़ते हैं, मन की समस्याएं उलझ जाती हैं। मानसिक पागलपन, मानसिक विक्षिप्तता उभरकर सामने आ जाती है। जब-जब हम अपनी भाव-शुद्धि की धारा से जुड़ते हैं, सब कुछ ठीक हो जाता
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आज के शरीर-शास्त्री बतलाते हैं कि हमारे मस्तिष्क में दो ऐसी ग्रन्थियां हैं, एक है हर्ष की और एक है शोक की। दोनों सटी हुई हैं। हर्ष की ग्रन्थि उद्घाटित हो जाए तो हर घटना में व्यक्ति सुख का अनुभव करे । उसे दुःख नहीं होगा। यदि शोक वाली ग्रन्थि खुल जाए तो फिर चाहे जितना ही सुख हो, करोड़पति बन जाए, दु:ख का अन्त होने वाला नहीं है। पर खतरा यही है कि एक को खोलते समय दूसरी खुल जाए तो फिर सारा चौपट हो जाए। सुख और दुःख की धाराएं सटी हुई चल रही हैं।
जो व्यक्ति निरन्तर भाव को शुद्ध रखता है, उस पर आक्रमण नहीं हो सकते। और होते भी हैं तो बहुत मंद होते हैं। वह बच जाता है। भाव-शुद्धि एक शक्तिशाली उपाय है। यदि उसके प्रति हमारी जागरूकता बढ़ जाए तो इन खतरों से बचा जा सकता है।
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