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जैन दर्शन और विज्ञान मन किन-किन प्रभावों से कितना प्रभावित होता है। मन क्षेत्र से भी प्रभावित होता है और काल से भी प्रभावित होता है ज्योतिर्विज्ञान का विकास प्रभावों के विश्लेषण के लिए हुआ था। किन्तु आज उसका रूप बदल गया है। वह केवल फलित में उलझ गया है। उसका विषय तो था हमारी इस पृथ्वी पर, पूरे वातावरण पर और वायुमंडल पर तथा मनुष्य के स्वभाव और व्यवहार पर सौरमंडल का क्या प्रभाव होता है, इसका अध्ययन और विश्लेषण करना, पर वह उससे दूर चला गया। यह स्पष्ट है कि हमारा सारा वातावरण अंतरिक्ष से प्रभावित है। पृथ्वी और अंतरिक्ष को सर्वथा विभक्त नहीं किया जा सकता। मनुष्य के लिए जितनी संपदा पृथ्वी पर है, उससे कम अन्तरिक्ष में नहीं है। मनुष्य पर पृथ्वी का जितना प्रभाव पड़ता है, अंतरिक्ष का प्रभाव उससे कम नहीं पड़ता। आदमी अंतरिक्ष से अधिक प्रभावित होता है। अंतरिक्ष में जैसा सौरमंडल है, वैसा सौरमंडल प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में है। ग्रहों और अंतर्ग्रहों का बहुत गहरा सम्बन्ध है।
हमारे अंतर्ग्रह आकाश के ग्रहों के विकिरणों से बहुत प्रभावित होते हैं। मनुष्य जीता है। ऋतुचक्र के साथ-साथ ।
ऋतु का एक चक्र है। भारत में छह ऋतुओं का विकास हुआ। हो सकता है कि भौगोलिक कारणों से कुछ स्थानों में ऋतुएं छह न होती हों, कम होती हों। किन्तु भारत में छह ऋतुएं होती हैं और उन ऋतुओं से मनुष्य का जीवन जुड़ा हुआ है। जैसे ऋतुचक्र बदलता है, हमारा शरीर भी बदलता है और स्वास्थ्य में भी परिवर्तन आता है। आयुर्वेद ने ऋतुचक्र के परिवर्तन के साथ-साथ स्वास्थ्य परिवर्तन और शरीर-परिवर्तन की विशद चर्चा की है। इसमें केवल स्वास्थ्य और शरीर ही नहीं बदलता. भाव भी बदलते हैं। भाव बदलता है तो मन बदलता है। भाव और मन दोनों बदलते हैं। यह आयुर्वेद और अध्यात्म का मिला-जुला योग है। यह आवश्यक है कि ऋतु-परिवर्तन के साथ मनुष्य में होने वाले परिवर्तनों का संयुक्त अध्ययन किया जाए और यह जाना जाए कि क्या-क्या परिवर्तन घटित होते हैं।
आयुर्वेद की मान्यता है कि ऋतु के साथ-साथ भोजन का परिवर्तन भी हो जाना चाहिए। आयुर्वेद में किस ऋतु का भोजन क्या है, इसकी उन्मुक्त चर्चा है। शरीर के लिए कब कैसा भोजन अपेक्षित होता है, इस विषय में बहुत सुन्दर प्रतिपादन वहां प्राप्त होता है। ज्योतिष के ग्रन्थों ने इस विषय को आगे बढ़ाते हुए प्रतिपादन किया कि किस ऋतु में किस प्रकार के भाव पैदा होते हैं और उनका क्या-क्या असर होता है।
वर्ष के दो अयन हैं-उत्तरायन और दक्षिणायन। हमारे मन के भी दो अयन होते हैं-उत्तरायन और दक्षिणायन । तपस्या, तेजस्विता, उग्रता-यह हमारे
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