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अध्यात्म और विज्ञान
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मन का उत्तरायण है। जड़ता और नींद की शांति - यह हमारे मन का दक्षिणयान है । ऑकल्ट साइंस में दो ध्रुवों की चर्चा है- एक है उत्तरी ध्रुव और दूसरा है दक्षिण ध्रुव । दोनों ध्रुवों का मन के साथ गहरा सम्बन्ध है । रीढ़ की हड्डी के ऊपर का भाग- ज्ञानकेन्द्र - उत्तरी ध्रुव है और रीढ़ की हड्डी का निचला भाग- - शक्तिकेन्द्र और कामकेन्द्र - दक्षिणध्रुव है। इस प्रकार ऋतुओं और अयनों के साथ मन का सम्बन्ध जुड़ा हुआ है । उपाध्याय मेघविजयी ने एक ग्रन्थ लिखा है । उसका नाम है- अर्हत् गीता। उसमें ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से मानसिक स्थितियों का सूक्ष्म विचार प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने पूरे वर्ष, बारह मास, बारह राशियां दो अयन, छह ऋतु और सात वार- प्रत्येक के साथ मन के सम्बन्ध की चर्चा की है। यह बहुत महत्त्वपूर्ण विषय है और इसका सूक्ष्म विवेचन वहां प्रस्तुत है । यह सारी चर्चा इसलिए कि मानसिक शांति के प्रश्न पर सोचने वाले लोगों को एक ही कोण से नहीं सोचना चाहिए । अनेक कोणों से सोचना चाहिए। मन की अशांति हजार व्यक्तियों में मिलती है तो हजार व्यक्तियों के लिए अशांति का कारण एक ही नहीं होता, अनेक कारण होते हैं और उन अनेक कारणों के लिए एक ही समाधान देंगे तो वह पर्याप्त नहीं हो । भिन्न-भिन्न समाधान भी चाहिए। किसकी किस प्रकार की समस्या है और किस प्रकार का हेतु मन की अशांति को उत्पन्न कर रहा है, जब तक इसका विश्लेषण नहीं कर लिया जाएगा और इसका सम्यक् बोध नहीं होगा, तब तक दिया हुआ समाधान असमाधान ही बना रहेगा ।
चिकित्सा की एक शाखा 'मनश्चिकित्सा' विस्तार पार रही है । आज बड़े अस्पतालों के साथ एक मनश्चिकित्सक भी रहता है । वह मन की चिकित्सा करता है। यह एक शाखा तो बन गई है । किन्तु मन की बीमारियों की एक शाखा तो नहीं है ।
बुद्धि की प्रखरता ने इतनी कल्पनाएं दे दीं, इतनी महत्त्वाकांक्षाएं जगा दीं, इतने बड़े-बड़े मूल्य सामने रख दिए कि पूर्ति नहीं हो रही है और मन की अशांति के लिए बहुत अच्छी सामग्री है । महत्त्वाकांक्षा तो बहुत बढ़ जाए और पूर्ति हो न सके, इससे विकट और कोई समस्या हो नहीं सकती। जब तक आदमी की महत्त्वाकांक्षा न जागे, शायद वह शान्ति का जीवन जी सकता है। हो सकता है कि विकास का जीवन न हो, पर शान्ति का जीवन जी सकता है । महत्त्वाकांक्षा जाग जाए और उसकी संपूर्ति न हो, उस स्थिति में क्या बीतता है, वही जानता है या भगवान् जानता है, कल्पना नहीं की जा सकती। इतनी बैचेनी, इतनी कठिनाई और परेशानी होती है कि उस परेशानी को कोई बता नहीं सकता ।
मानसिक समस्याओं के अनेक कारण हैं। उन सबका सम्यक् विश्लेषण
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