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________________ अध्यात्म और विज्ञान ___ आज टेलीफोन करने मात्र से ही मनपसन्द के माडल रूपाकार की नवनिर्मित कार उसके दरवाजे के आगे आकर खड़ी हो जाएगी। भविष्य में विज्ञान की यह गति और भी अधिक बढ़ जाने वाली है तथा मनुष्य के पास सुख-सुविधाओं का अम्बार लग जाने वाला है। शक्ति-स्रोतों के विविध उपादानों के साथ-साथ अणु-शक्ति ने भी मनुष्य को अकल्प्य रूप में विस्तृत कर दिया है। फिर भी तनाव बढ़े हैं पर बड़े-बड़े रिएक्टर, हाईड्रोइलेक्ट्रिक पावर हाउस तथा अणुबिजली घरों का खतरा भी कम गहरा नहीं हुआ। औद्योगिक प्रदूषण से पूरी दुनिया के संतुलन को खतरा पैदा हो गया है। आदमी आज मशीन का इतना दास बन गया है कि उसके तनावों का भी कोई पार नहीं है। यद्यपि तनाव हमेशा मनुष्य का पीछा करते हैं पर आज मनुष्य जिस रूप से तनावग्रस्त है, उससे उपरोक्त सारी प्रगति पर एक प्रश्नचिन्ह लग गया है। श्रम को हेय न मानें श्रम की मनोवृत्ति के साथ-साथ आज श्रम को हेय समझने की मनोवृत्ति का भी इतना विकास हो गया है कि अपने आपको सभ्य मानने वाला मनुष्य जरा-सा श्रम करते हुए भी हिचकिचाता है। ऐसी स्थिति में हमें फिर से मुड़कर देखना होगा। ऐसी नहीं है कि आदमी विज्ञान की उपलब्धियों की अनदेखी कर दें पर उसे यदि आनन्दपूर्ण जीवन जीना है तथा दूसरों के आनन्द को नहीं छीनना है, तो यह आवश्यक है कि न केवल वह स्वय ही श्रम से जी न चुराएं अपितु अन्य लोगों के श्रम को छीनकर उन्हें दर-दर भटकने देने का भागीदार भी न बने। आज बहुत सारे विकसित देशों ने अपने उद्योगों के द्वारा बहुत सारे अविकसित देशों के सामने समस्याएं खड़ी कर दी है, जिनसे निपटना बड़ा कठिन हो गया है। सबसे बड़ी समस्या आवश्यकता यह है कि मनुष्य श्रम को हेय न समझे। सचमुच में मानव-मात्र की हित-चिन्ता तथा अपने तनावों से मुक्त होने की यह टेक्नीक आदमी को विज्ञान से नहीं अध्यात्म से सीखनी होगी। वैसे विज्ञान ने भी अध्यात्म के इस सत्य पर अपनी मुहर लगाना शुरू कर दिया है कि श्रम के बिना आदमी का अपना जीवन भी आनन्दमय नहीं बन सकेगा। वैज्ञानिक उपलब्धियों के प्रकाश में आज अध्यात्म की पुस्तक पढ़ना आवश्यक हो गया है। मन की शांति आज इस वैज्ञानिक युग में मन की शांति का प्रश्न अहं प्रश्न है। मन की समस्याओं पर चर्चाएं चलती हैं। हमें इस संदर्भ में यह जानना चाहिए कि हमारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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