________________
जैन दर्शन और विज्ञान विज्ञान से मनुष्य ने इतना सामर्थ्य अर्जित किया है कि उससे पूरी धरती पर सुख की फसल उगाई जा सकती है। पर आज तो वही दुनिया का सबसे बड़ा सिरदर्द बन रहा है। भले ही शस्त्रास्त्रों का युद्ध स्तर पर उपयोग करने में राजनैतिक स्वार्थ मुख्य मोहरे बनते हों, पर विज्ञान यदि राजनीति के हाथों में नहीं खेलता तो वह विनाश का सर्जन-हार नहीं बनता।
अब भी समय है कि आदमी संभले। अध्यात्म के संभलने का अर्थ है लिखे-लिखाए शब्दों की लीक पर चलने से पूर्व उन पर प्रायोगिक परीक्षा करें। प्रेक्षाध्यान विज्ञान के प्रकाश में योग को प्रायोगिक स्वरूप प्रदान कर रहा है जो आज के चिकित्सा-शास्त्र को भी मान्य हो रहा है। सामान्यतया जनभावना में अध्यात्म के प्रति जो एक उदासीनता दीख रही थी, उसमें जो ठहराव आ गया था वह टूटता हुआ प्रतीत हो रहा है। युवकों के प्रेक्षाध्यान के प्रति बढ़ता हुआ उत्साह इस तथ्य का प्रकट निदर्शन है।
आध्यात्मिकवैज्ञानिक व्यक्तित्व के निर्माण का तात्पर्य केवल इन दोनों विषयों का तुलनात्मक अध्ययन ही नहीं है अपितु उस चेतना का जागरण है जो शाश्वत सत्यों और प्रयोग-दोनों की सत्ता को एक स्वीकार करें। तुलनात्मक अध्ययन तो इसका सतही स्तर है। वैज्ञानिक विकास: वरदान या अभिशाप
आज मनुष्य के पास बोझ ढोने के अनेक साधन हैं। टूकें, ट्रालियां, ट्रेन आदि ऐसे अनेक भीमकाय भारवाही वाहन निकल गए हैं। उसके पास इतने तीव्र गति वाले यान-वाहन आ गए हैं कि सन् १९३८ में प्रतिघण्टा बीस मील चलने वाला आदमी आज ४०,००० मील प्रतिघण्टा की यात्रा आराम से कर सकता है। कोलम्बिया शटल के कार्यरत हो जाने से न केवल धरती पर ही अपितु अन्तरिक्ष में भी मनुष्य का बेरोक-टोक आवागमन शुरू हो गया है।
यन्त्रों, कम्प्यूटरों तथा रोबोटों का आविष्कार हो जाने से न केवल मनुष्य का श्रम ही बच गया है अपितु उसे बहुत सारी चीजें उपलब्ध होने लगी है। आज दत्सून जैसे औद्योगिक इकाई में केवल अठारह आदमी ही प्रतिदिन दो हजार कारों का उत्पादन करने लगे हैं। टेक्सास इंस्ट्रमेंट्स तथा हेलविट एण्ड मैकार्ड जैसे प्रतिष्ठानों में तो आदमी का कोई बच्चा भी काम नहीं कर रहा है। आभियांत्रिकी के संबोध से आज हर चीज मनुष्य को घर बैठे उपलब्ध होने लगी है। वह अपने कमरे में बैठा हमारी दुनिया ही नहीं अपितु अन्य ग्रहों के लोगों से भी न केवल बातचीत ही कर सकता है अपितु उनसे साक्षात्कार भी कर सकता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org