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अध्यात्म और विज्ञान ऊंचे-ऊंचे स्थानों के विकास में उपयोग करेंगे, नाभि से ऊपर के केन्द्रों को विकसित करने में उस शक्ति को लगाएंगे तो एक अनुपम आनन्द, निर्मल चेतना, शक्तिशाली प्रज्ञा हमारे व्यक्तित्व में जागेगी और ऐसे व्यक्तित्व तैयार होंगे जिनकी आज के इस कलह-प्रधान, क्रोध-प्रधान, अधैर्य-प्रधान मानवीय सभ्यता में सबसे ज्यादा अपेक्षा
__आज के युग में निरन्तर हिंसा, मार-काट, हत्याएं, आत्महत्याएं और नाना अपराधों का विकास हो रहा है, नींद कम होती जा रही है, स्मरण-शक्ति कम होती जा रही है, आंतरिक शक्तियां और सहिष्णुता की शक्ति कम होती जा रही है, धैर्य का लोप होता रहा है। इस प्रकार के युग में यदि समस्याओं का समाधान पाना है तो प्राणशक्ति का विकास और उसका आध्यात्मिकीकरण हमारे लिए नितांत अनिवार्य है।
(३) आध्यात्मिक वैज्ञानिक व्यक्तित्व का निर्माण
श्रद्धा और तर्क, नया और पुराना, अध्यात्म और विज्ञान, पूर्व और पश्चिम-ये बहत सारे द्वन्द्व हैं। जीवन के लिए दोनों की ही उपयोगिता है। कहीं यदि श्रद्धा होती है और इतनी प्रगाढ़ होती है कि तर्क बेचारा विवश हो जाता है। 'नया' जीवन पर हावी होता है तो इस तरह से होता है कि आदमी पुराने' से बिलकुल टूट जाता है। 'विज्ञान' आदमी के नजदीक होता है तो 'अध्यात्म' आदमी से बहुत दूर हो जाता है। 'पूर्व' एक छोर पर होता है तो 'पश्चिम' दूसरे छोर पर होता है। दोनों में एक अलंध्य फासला दिखाई देता है। अध्यात्म स्वयं एक विज्ञान
इसमें कोई सन्देह नहीं कि अध्यात्म एक अनुत्तर विज्ञान है और वह जीवन को आनन्द प्रदान करता है। पर इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि विज्ञान भी सत्य की खोज का एक मार्ग है और ढेर सारी सुविधाएं प्रदान करता है। पूर्ण रूप से अध्यात्म में जीने वाले व्यक्ति के लिए अपने आपमें ही वह मिल जाता है। उसे विज्ञान के सामने अपना भिक्षा-पात्र फैलाने की आवश्यकता नहीं रहती। विज्ञान के ताने-बाने में बुने जाने वाले वस्त्र में जीवन को अमाप्य ऊंचाइयां देने की क्षमता है। पर आज कठिनाई यही है कि अध्यात्म जहां ऊपरी क्रियाकांडों से उलझ गया है, वहां विज्ञान केवल भौतिक प्रवृतियों से प्रतिबद्ध हो गया है।
___वैज्ञानिक युग में वैज्ञानिक दृष्टि अपेक्षित है। शांतिपूर्ण जीवन के लिए आध्यात्मिकता भी अनिवार्य है। आध्यात्मिकता + वैज्ञानिकता - आध्यात्मिक वैज्ञानिक व्यक्तित्व।
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