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________________ जैन दर्शन और विज्ञान हैं, जिनके माध्यम से कुंडलिनी जागती है। ऐसा भी होता है कि पूर्व संस्कारों की प्रबलता से भी कुंडलिनी जागृत हो जाती है और यह अकास्मिक होता है। व्यक्ति कुछ भी प्रयत्न या साधना नहीं कर रहा है, पर एक दिन उसे लगता है कि उसकी प्राणाशक्ति जाग गयी। इसलिए कोई नियम नहीं बनाया जा सकता कि अमुक के द्वारा ही कुंडलिनी जागती है और अमुक के द्वारा नहीं जागती। कभी-कभी ऐसा होता है कि व्यक्ति गिरा, मस्तिष्क पर गहरा आघात लगा और कुंडलिनी जाग गयी। उसकी अतीन्द्रिय चेतना जाग गयी। कुंडलिनी के जगाने के अनेक कारण है। औषधियों के द्वारा भी कुंडलिनी जागृत होती है। अमुक-अमुक वनस्पतियों के प्रयोग से कुंडलिनी के जागरण में सहयोग मिलता है। तिब्बत में तीसरे नेत्र का उद्घाटन में वनस्पतियों का प्रयोग भी किया जाता था। पहले शल्यक्रिया करते, फिर वनौषधियों का प्रयोग करते थे। औषधियों का महत्त्व सभी परम्पराओं मे मान्य रहा है। प्रसिद्ध सूक्त है-अचिन्त्यो मणिमंत्रौषधीनां प्रभाव:- मणियों, मंत्रों और औषधियों का प्रभाव अचिन्त्य होता है। मंत्रों के द्वारा भी कुंडलिनी को जगाया जा सकता है। विविध मणियों, रत्नों के विकिरणों के द्वारा और औषधियों के द्वारा भी उसे जागृत किया जा सकता है। प्राण-शक्ति की विद्युत का चमत्कार एक अंगली हिलती है। कितना बड़ा चमत्कार है एक अंगुली का हिलना, किंतु इसे चमत्कार मानते ही नहीं हैं। क्योंकि यह बेचारी रोज हिलती है। अगर कभी-कभी हिलती तो यह भी बड़ा चमत्कार होता। इसे कोई चमत्कार नहीं मानते, किंतु जानने वाले जानते है कि एक अंगुली को हिलाने के लिए कितने बड़े तंत्र का सहारा लेना पड़ता है। इतना बड़ा तंत्र शायद सरकार का भी नहीं है। पहले सोचते हैं, मस्तिष्क के ज्ञानतंतु सक्रिय होते हैं, और फिर वे क्रियावाही तंतुओं को निर्देश देते हैं। वह निर्देश वहां तक पहुंचता है तो अंगुली हिलती है। बहुत छोटी-सी बात है, मैंने थोड़े में, एक मिनट में कह दी। पर प्रक्रिया इतनी बड़ी है कि करने बैठे तो हजारों हजारों कर्मचारी भी जीवन में पूरी नहीं कर सकते। मस्तिष्क की रचना बहुत विचित्र है। कोई वैज्ञानिक हमारे मस्तिष्क जैसे सूक्ष्म अवयवों का कम्प्यूटर बनाना चाहे तो आज की पूरी पृथ्वी भर जाए-इससे भी शायद ज्यादा बड़ा होगा। एक अंगुली के हिलने में कितनी क्रिया होती है, हम समझ ही नहीं पाते। कायोत्सर्ग का मूल्य समझ में नहीं आता किन्तु जो शरीर की क्रिया जो जानता है, वह व्यक्ति समझ सकता है कि कायोत्सर्ग कितना मूल्यवान् है? कायगुप्ति का कितना मूल्य है? शरीर को स्थिर करने का कितना मूल्य है? हम इसको इस संदर्भ में समझें कि एक अंगली हिलती है, इसका मतलब है मन की शक्ति खर्च होती है, चित्त की शक्ति खर्च होती है और पूरे शरीर में जो काम करने वाली विद्युत् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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