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अध्यात्म और विज्ञान आवृत्त हो जाए तो जीव अजीव बन जाए, चेतन अचेतन हो जाए। चेतन और अचेतन के बीच यही तो एक भेद-रेखा है।
प्रत्येक प्राणी की कुंडलिनी यानी तैजस शक्ति जागृत रहती है। अंतर होता है मात्रा का। कोई व्यक्ति विशिष्ट साधना के द्वारा अपनी इस तैजस शक्ति को विकसित कर लेता है और किसी व्यक्ति को अनायास ही गुरु का आशीर्वाद मिल जाता है तो साधना में तीव्रता आती है और कुंडलिनी का अधिक विकास हो जाता है। वह अनुभव आगामी यात्रा में सहयोगी बन सकता है। बनता है यह जरूरी नहीं है। गुरु की कृपा ही क्यों, मैं मानता हूं कि जिस व्यक्ति का तैजस शरीर जागृत है, उस व्यक्ति के सानिध्य में जाने से भी दूसरे व्यक्ति की कुंडलिनी को (तैजस शरीर को) उत्तेजना मिल जाती है और वह अर्द्धजागृत कुंडलिनी पूर्ण जागृत हो जाती है। प्रश्न है विद्युत्-प्रवाहों का। 'क' और 'ख' दो व्यक्ति हैं। 'क' के विद्युत-प्रवाह बहुत सक्रिय है। 'ख' के विद्युत प्रवाह कमजोर हैं। यदि 'ख' 'क' के पास जाता है तो 'क' के विद्युत प्रवाह 'ख' को प्रभावित करेंगे उसमें एक प्रकार के विद्युत स्पंदन पैदा हो जाएंगे।
गुरु-कृपा का तात्पर्य है उस व्यक्ति का सान्निध्य जिसका तैजस जागृत है। गुरु का अर्थ परम्परागत गुरु से नहीं है। जिस व्यक्ति की तैजस शक्ति विकसित है, उसके पास जाने से, उसके आशीर्वाद प्राप्त करने से, उसके हाथों का मस्तिष्क पर स्पर्श प्राप्त होने से या पृष्ठरज्जु पर उसका स्पर्श मिलने से कुंडलिनी-शक्ति को जगाने में सहयोग मिलता है। उसको अनुभव होने लग जाता है। वह क्षणिक अनुभव विद्युत-जागरण जैसा होता है। गुरु-कृपा से मिलने वाला यह क्षणिक अनुभव या जागरण क्षणिक ही होता है, स्थायी नहीं होता। एक क्षण में अपूर्व अनुभव हुआ और दूसरे क्षण में वह समाप्त हो गया। इलैक्ट्रोड लगाने से क्षणिक अनुभव होता है और से हटा देने से वह अनुभव भी समाप्त हो जाता है। वैसा ही यह अनुभव होता है। अन्तत: कुंडलिनी का जागरण साधक को स्वयं ही करना पड़ता है। उसे प्रयास करना होता है। गुरु-कृपा का इतना-सा लाभ होता है कि एक बार जब अनुभव हो जाता है, फिर चाहे वह अनुभव क्षणिक ही क्यों न हो, वह आगे के अनुभव को जगाने के लिए प्रेरक बन जाता
हैं।
कुंडलिनी-जागरण के मार्ग
प्रेक्षाध्यान से कुंडलिनी जाग सकती है। उसको जगाने के और भी अनेक मार्ग हैं, अनेक उपाय हैं। संगीत के माध्यम से भी उसे जगाया जा सकता है। संगीत एक सशक्त माध्यम है कुंडलिनी के जागरण का। व्यायाम और तपस्या से भी वह जाग जाती है। भक्ति, प्राणायम, व्यायाम, उपवास, संगीत, ध्यान आदि अनेक साधन
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