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अध्यात्म और विज्ञान ऊर्जा का सुरक्षा करना, ऊर्जा का विकसित करना और ऊर्जा के स्रोत को मोड़कर नीचे से ऊपर की ओर ले जाना। साधना की समूची पद्धति, अध्यात्म का समूचा मार्ग ऊर्जा के ऊर्वीकरण का मार्ग है।
__ शरीर बहुत मूल्यावान् है। मांसपेशियों का भी आध्यात्मिक मूल्य है। रक्त, नाड़ी-संस्थान और ग्रन्थियों का भी आध्यात्मिक मूल्य है। ऊपर का स्रोत खुलता है तो प्राणशक्ति का प्रवेश होता है और नीचे का स्रोत खुला रहता है तो प्राणशक्ति का निर्गमन होता है, बिजली बाहर जाती है और आदमी शक्तिशून्य हो जाता है। अध्यात्म-विज्ञान में शरीर का महत्त्व
जो इस स्थूल शरीर से परे है, वह इन्द्रियों का विषय नहीं है। वह इन्द्रियों से नहीं जाना जा सकता। किन्तु हमारे शरीर में कुछ ऐसे तत्त्व हैं, जिनके विषय में चिंतन और अनुभव करते-करते हम अपनी बुद्धि और चिदशक्ति के द्वारा इन्द्रियों की सीमा से परे जाकर सूक्ष्म शरीर की सीमा में प्रविष्ट हो सकते हैं। उनमें एक तत्त्व है प्राण-विद्युत् । अग्निदीपन, पाचन, शरीर का सौष्ठव और लावण्य, ओज-ये जितनी आग्नेय क्रियाएं हैं, ये सारी सप्त धातुमय इस शरीर की क्रियाएं नहीं है। इस स्थूल शरीर के भीतर तेज का एक शरीर और है, वह है विद्युत् शरीर तैजस् शरीर। वह सूक्ष्म शरीर है। वही इस स्थूल शरीर की सारी क्रियाओं का संचालन करता है। उस सूक्ष्म शरीर में से विद्युत् का प्रवाह आ रहा है और उस विद्युत् प्रवाह से सब कुछ संचालित हो रहा है। उस सूक्ष्म शरीर को प्राण शरीर भी कहा जाता है। यह शरीर का प्राण का विकिरण करता है और उसी प्राण-शक्ति से क्रियाशीलता आती है।
श्वास, मन, इन्द्रियां, भाषा, आहार और विचार-ये सब प्राण-शक्ति के ऋणी हैं। उससे ही ये सब संचलित होते हैं, क्रियाशील होते हैं। प्राणशक्ति तैजस शरीर से नि:सृत है।
__इसी संदर्भ में एक प्रश्न और होता है कि वह तैजस शरीर किसके द्वारा संचालित है? वह प्राणधारा को प्रवाहित अपने आप कर रहा है या किसी के द्वारा प्रेरित होकर कर रहा है? यदि अपने आप कर रहा है तो तैजस शरीर जैसा मनुष्य में है वैसा पशु में भी है, पक्षियों में भी है और छोटे-से-छोटे प्राणी में भी है। एक भी प्राणी ऐसा नहीं है, जिसमें तैजस शरीर, सूक्ष्म शरीर न हो। वनस्पति में भी तैजस शरीर है, प्राण-विद्युत् है। वनस्पति में भी ओरा होता है। आभामंडल होता है। वह आभामंडल इस स्थूल शरीर से निष्पन्न नहीं है। आभामंडल (ओरा) उस सूक्ष्म शरीर-तैजस शरीर का विकिरण है। प्रश्न होता है, यह रश्मियों का विकिरण क्यों होता है? यदि तैजस शरीर का कार्य केवल विकिरण करना ही हो तो मनुष्य इतना ज्ञानी, इतना
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