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जैन दर्शन और विज्ञान उनको हम स्थूल भाषा के माध्यम से स्थूल अभिव्यक्ति देते हैं । किन्तु जब सूक्ष्म जगत् को जानें तो वहां का लेखा-जोखा इतना विचित्र है कि वहां भाषा भी समाप्त हो जाती है और सभी शब्दकोशों के सारे शब्द अकर्मण्य बन जाते हैं । उनको अभिव्यक्ति देने वाला कोई शब्द प्राप्त नहीं होता ।
इतना होने पर भी हम सूक्ष्म जगत् की चर्चा इसलिए कर रहे हैं कि हम सूक्ष्म परिवर्तनों को जान सकें और सूक्ष्म परिवर्तन की प्रक्रिया को पकड़ सकें । सबसे पहले हमें यह स्थूल शरीर दिखाई देता है । यह शरीर केवल स्थूल पदार्थों का ही पिण्ड नहीं है । इस शरीर के साथ सूक्ष्म जगत् का घना सम्बन्ध है I हम बाहर की चमड़ी को देखते हैं। हमारा उससे सम्बन्ध जुड़ जाता है और हम वहीं अटक जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति चमड़ी को या अन्य अवरोधकों को पार कर भीतर प्रवेश करें तो उसे ज्ञात होगा की भीतर में सूक्ष्म जगत् इतना विराट् है कि जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती ।
जितने पुराने ग्रन्थ हैं, उनमें सांकेतिक भाषा बहुत हैं, स्पष्ट कम हैं । हमने विज्ञान के माध्यम से जो कुछ बातें समझी हैं, वे बातें पुराने ग्रन्थों के आधार पर नहीं समझी जा सकतीं। फिर चाहें वह पातंजल योग दर्शन हो या अन्य कोई योग का ग्रन्थ हो ।
शरीर के विषय में ध्यानी योगियों ने बहुत चर्चाएं की हैं, पर वर्तमान शरीर - शास्त्रीय चर्चाओं के परिप्रेक्ष्य में वे चर्चाएं अपर्याप्त-सी लगती हैं । आज शरीर-शास्त्र ने शरीर के इतने तथ्य अनावृत किए हैं, जिनका अनावरण प्राचीन काल में नहीं हुआ था । जब से जीवाणु का सिद्धान्त, जीवन और क्रोमोसोम का सिद्धान्त, डी. एन. ए. आदि रसायनों का सिद्धान्त सामने आया है, उससे सूक्ष्म जगत् की अद्भुत परिकल्पनाएं प्रस्तुत हुई हैं । पचीस हजार जीवाणु ज्ञात कर लिए गए हैं। इन जीवाणुओं के 'जीन' के माध्यम से विलक्षण कार्य सम्पन्न किए जा सकते हैं । आज जीवन की ऐसी श्रृंखला ज्ञात कर ली गई है, जिससे आदमी को बदला
जा सकता है, स्वभाव और जीवन को बदला जा सकता है, नस्ल को बदला जा सकता है । 'बायोटेकनोलॉजी' और 'जीन-इंजीनियरिंग' के माध्यम से नयी-नयी अवधाराएं सामने लगी हैं। ये जानकारियां प्राचीन ग्रन्थों में बहुत कम हैं। यह एक सर्वथा नया क्षेत्र उद्घाटित हुआ है ।
जीन के रूपान्तरण का अर्थ होता है पूरे व्यक्तित्व का रूपान्तरण । एक जीन बदलता है और उस आनुवंशिकी यांत्रिकी के द्वारा पूरी जाति का स्वभाव ही बदल जाता है। यह परिवर्तन की बात सर्वथा नयी नहीं है, किन्तु उसकी विशद व्याख्या और विशद जानकारी आज हमें उपलब्ध है। इससे हम अधिक लाभान्वित
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