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जैन दर्शन और विज्ञान __ओकल्ट साइन्स के वैज्ञानिकों ने यह तथ्य प्रगट किया कि आदमी जब तक अपने शरीर के विशिष्ट केन्द्रों को चुम्बकीय क्षेत्र नहीं बना लेता, एलेक्ट्रो-मेग्नेटिक फील्ड नहीं बना लेता तब तक उसमें पारदर्शन की क्षमता नहीं जाग सकती। चैतन्य-केन्द्रों और चक्रों की सारी कल्पना का मूल उद्देश्य है--शरीर को विद्युत-चुम्बकीय क्षेत्र बना लेना। सहिष्णुता और समभाव वृद्धि के प्रयोग उपवास, आसन, प्राणयाम, आतापना, सर्दी-गर्मी को सहने का अभ्यास-इन सारी प्रक्रियाओं से शरीर के परमाणु विद्युत-चुम्बकीय क्षेत्र में बदल जाते हैं और वह क्षेत्र इतना पारदर्शी बन जाता है कि उस क्षेत्र से भीतर की चेतना बाहर झांक सकती है।
___ आज के पेरासाइकोलॉजिस्ट टैलीपैथी का प्रयोग करते हैं। टैलीपैथी का अर्थ है-विचार-संप्रेषण। एक आदमी कोसों की दूरी पर है। उससे बात करनी है कैसे हो सकती है? आज तो टेलीफोन और वायरलेस का साधन है। घर बैठा आदमी हजारों कोसों पर रहने वाले अपने व्यक्तियों से बात कर लेता है। प्राचीन काल में ये साधन नहीं थे, तो दूर स्थित व्यक्तियों से बात कैसे करते थे? टैलीपैथी शब्द भी नहीं था। यह अंग्रेजी का शब्द है। उस समय विचारों को हजारों कोस दूर भेजना विचार-संप्रेषण की प्रक्रिया से होता था। जैसे एक योगी है। उसका शिष्य पांच हजार मील की दूरी पर है। योगी उसे कुछ बताना चाहता है, उससे बातचीत करता चाहता है। उस समय विचार-संप्रेषण की साधना की जाती थी। जिससे विचारों का आदान-प्रदान दो जाता था। अतीन्द्रिय ज्ञान
अभी परामनोविज्ञान परिचित्त बोध, दूरदृष्टि, पूर्वाभास तथा भूताभास रूपों में अतीन्द्रिय ज्ञान की खोज कर रहा है। पर असल में यह सारा प्रामाण्य मन के आस-पास ही घूम रहा है। अतीन्द्रिय ज्ञान तो मन से भी ऊपर है। ज्ञान की पराकाष्ठा तो अनन्त का स्पर्श है। वह पढ़ने-लिखने, यंत्रों या मन:कल्पनाओं से प्राप्त नहीं होता। उस अनन्त ऊर्जा का उद्घाटन तो मनुष्य अपने साधना-बल से ही कर सकता है। अभी हम अनन्त की बात न भी करें तो भी विज्ञान ने इन्द्रिय-बोध की जो संभावनायें व्यक्त की हैं वे भी बहुत आश्चर्यकारी हैं । वैज्ञानिकों का मानना है कि मनुष्य के मस्तिष्क में इतने न्यूरोन-कनेक्शन हैं कि उन सारों की गणना की जाये तो एक के अंक पर ८०३ शून्य लगाने पड़ेंगे। इस गणना की गुरूता का बोध हम इस तथ्य से अच्छी तरह से कर सकते हैं कि पूरी पृथ्वी पर परमाणुओं की संख्या एक के अंक पर १०८ शून्य लगाने जितनी है। १०८ और ८०३ के अन्तर को सहज ही समझा जा सकता है। मनुष्य आज अपने मस्तिष्क में अधिक से अधिक आठ दस खरब न्यूरोन-कनेक्शनों का उपयोग कर रहा है। ऐसी स्थिति में खरबों-खरबों अपार
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