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अध्यात्म और विज्ञान
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रहा है। ऑपरेशन करते-करते एक बिन्दु पर डॉक्टर ने गलती की। तत्काल ऊपर से रोगी ने कहा, डॉक्टर! यह भूल कर रहे हो । डॉक्टर को पता नहीं चला - 1-कौन बोल रहा है। उसने भूल सुधारी । वेदना कम होते ही रोगी का प्राण शरीर पुनः स्थूल शरीर में आ जाता है। प्रोजेक्शन की प्रक्रिया पूरी हो जाती है । होश आने पर रोगी ने डॉक्टर से कहा, छत पर लटकते हुए मैंने पूरा ऑपरेशन देखा है।
शरीर - प्रक्षेपण की अनेक प्रक्रियाएं हैं। इन प्रक्रियाओं में प्राण-शरीर बाहर चला जाता है ।
उस हब्शी महिला लिलियन ने कहा- 'मैं एस्ट्रल प्रोजेक्शन के द्वारा यथार्थ बात जान लेती हूं। मैं लोगों के आभामंडल में प्रविष्ट होकर उनके चरित्र का वर्णन कर सकती हूं। किन्तु शराबी आदमी के चरित्र को मैं नहीं जान सकती, क्योंकि शराबी आदमी का आभामंडल अस्त-व्यस्त हो जाता है । वह इतना धुंधला हो जाता है कि उसके रंगों का पता नहीं चलता ।'
हमारी भावनाएं, हमारे आचरण आभामंडल के निर्माता हैं । जब अच्छी भावनाएं, और पवित्र आचरण होता है तब आभामंडल बहुत सशक्त और निर्मल होता है, जब भावधारा मलिन होती है और चरित्र भी मलिन होता है तब आभामंडल धूमिल, विकृत और दूषित हो जाता हैं ।
सोवियत रूस के इलेक्ट्रॉनिक विशेषज्ञ सेमयोन किर्लियान तथा उनकी वैज्ञानिक पत्नी बेलेन्टिना ने फोटोग्राफी की एक विशेष विधि का आविष्कार किया । उस विधि द्वारा प्राणियों और पौधों के आस-पास होने वाले सूक्ष्म विद्युतीय गतिविधियों का छायांकन किया जा सकता है। जब एक पौधे से तत्काल तोड़ी गयी पत्ती की सूक्ष्म गतिविधियों की फिल्म खींची गयी तो आश्चर्यकारी दृश्य सामने आये । पहले चित्र में पत्ती के चारों ओर स्फुलिंगों, झिलमिलाहटों और स्पंदी ज्योतियों के मंडल दिखाई दिये । दस घंटे बाद लिए गए छाया चित्रों में ये आलोक-मंडल क्षीण होते दिखाई दिये। अगले दस घंटों के छाया - चित्रों में ये आलोक-मंडल पूरी तरह क्षीण हो चुके । इसका तात्पर्य है कि पत्ती की तब तक मौत हो चुकी थी ।
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किर्तियान दम्पत्ति ने एक रूग्ण पत्ती की फिल्म उस विशेष विधि से खींचीं । उसमें आलोक-मंडल प्रारंभ से ही कम था । वह शीघ्र ही समाप्त हो गया । किर्लियान दम्पत्ति ने उस विशेष विधि द्वारा अत्यंत निकट के मानव शरीर के छाया चित्र खींचे। उन छाया-चित्रों में गर्दन, हृदय, उदर आदि अवयवों पर विभिन्न रंगों के सूक्ष्म धब्बे दिखाई दिये । वे उन अवयवों से विसर्जित होने वाली विद्युद् ऊर्जाओं के द्योतक थे । लेश्या वनस्पति के जीवों में भी होती है। पशु-पक्षी तथा मनुष्य में भी होती है । इसलिए आभामंडल भी प्राणीमात्र में होता है ।
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