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जैन दर्शन और विज्ञान
पहले मृत्यु की घोषणा हृदय की धड़कन और नाड़ी की गति बंद होने तथा मस्तिष्क की कोशिकाओं के निष्क्रिय होने पर की जाती थी । अब उसकी घोषणा आभामण्डल के आधार पर की जाती है। जब तक आभामंडल क्षीण नहीं होता है प्राणी की मृत्यु नहीं होती। इसलिए तथाकथित मृत्यु की घोषणा होने के बाद भी अनेक मनुष्य जी उठते हैं ।
४. कर्म-परमाणुओं के प्रत्येक स्कन्ध में असंख्य संस्कारों के स्पंदन अंकित होते हैं। यह विषय बुद्धिगम्य नहीं है । किन्तु क्रोमोसोम ( गुणसूत्र ) और जीन ( संस्कार-सूत्र ) की वैज्ञानिक व्याख्या के पश्चात् वह विषय अस्पष्ट नहीं रहा । प्रत्येक जीन में छह लाख आदेश अंकित माने जाते हैं । जीन और कर्म का तुलनात्मक अध्ययन बहुत ही दिलचस्प विषय है ।
५. कर्म के संक्रमण का सिद्धांत - पुण्य को पाप के रूप में और पाप को पुण्य के रूप में बदलने की प्रक्रिया में अब संदेह नहीं किया जा सकता । जेनेटिक इंजीनियरिंग के अनुसार जीन के परिवर्तन का सिद्धांत मान्य हो चुका है और उसके परिवर्तन के उपाय खोजे जा रहे हैं ।
६. खनिज धातु में जीव का सिद्धान्त बहुत विवादास्पद रहा । किन्तु अब विज्ञान के चरण उस विवाद के समाधान की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं ।
कुछ भूवैज्ञानिक मानते हैं कि पत्थर और पहाड़ भी बढ़ते रहते हैं । धातु का प्रहार करने पर उसमें थकान आती है। कुछ समय बाद आराम के क्षणों में वह पूर्ववत् हो जाती है। थकान आना, आरम्भ के क्षणों में पूर्व स्थिति में चले जाना-ये जीव के लक्षण हैं, जो खनिज धातु में भी पाए जाते है ।
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७. वनस्पति की चेतना और उसकी संवेदनशीलता चर्चा का विषय बनी हुई थी। उसमें क्रोध, अहंकार, कपट, लोभ, भय, और मैथुन की प्रवृत्ति होती है । इसे स्वीकारना सहज सरल नहीं था । किन्तु वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा वनस्पति में इन सबका अस्तित्व प्रमाणित हो जाने पर वह विषय संदेहास्पद नहीं रहा । इस विषय में 'सीक्रेट लाइफ ऑफ प्लान्ट्स' पुस्तक पठनीय है।
८. जैन आगमों की गणना की परम कोटि का उल्लेख है । उसकी संज्ञा है - शीर्ष प्रहेलिका । उसके समक्ष आज की संख्या बहुत छोटी होती है ।
एक अंक पर दो सौ चालीस शून्य लगाने से वह संख्या बनती है। वह उत्कृष्ट संख्या है। जब विज्ञान ने सूक्ष्म गणित की बातें प्रस्तुत कीं, तब शीर्ष प्रहेलिका की सत्यता स्वयं प्रस्थापित हो गई और उसे बहुत महत्त्वपूर्ण खोज माना गया। ९. जैन साहित्य में उल्लेख है कि एक घंटा है अवस्थित । वह एक स्थान पर बजता है। उसकी ध्वनि से प्रकंपित होकर दूर-दूर हजारों-लाखों घंटे बज उठते
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